भारत को विभिन्न देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के कारण शुल्क में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। भारत ने जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) जैसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं। इनके तरजीही शुल्क कटौती के कारण भारत को वित्त वर्ष 2025 में 94,172 करोड़ रुपये के सीमा शुल्क का नुकसान उठाना पड़ा है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत व्यापार समझौतों पर बातचीत कर रहा है। ऐसे में सीमा शुल्क संग्रह पर आगे और दबाव दिख सकता है। यही कारण है कि वित्त वर्ष 2026 में सीमा शुल्क संग्रह महज 2.1 फीसदी बढ़कर 2.4 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। भारत और अमेरिका ने पारस्परिक रूप से लाभकारी, विभिन्न क्षेत्रों वाले द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर पहले चरण की बातचीत अगले सात से आठ महीनों में शुरू करने पर सहमति जताई है।
इसी प्रकार भारत और यूरोपीय संघ ने काफी समय से लंबित एफटीए वार्ता को अंतिम रूप देने के लिए दिसंबर तक की समय-सीमा निर्धारित की है। हालांकि ब्रिटेन और भारत ने एफटीए को पूरा करने के लिए फिलहाल कोई अंतिम समय-सीमा निर्धारित नहीं की है, मगर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को जल्दबाजी में नहीं बल्कि तेजी से पूरा किया जाएगा।
वित्त वर्ष 2026 के बजट दस्तावेजों के अनुसार, मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के कारण सरकार के राजस्व पर सबसे अधिक प्रभाव आसियान के मामले में दिखा। वित्त वर्ष 2025 में आसियान देशों के साथ एफटीए के कारण भारत को 37,875 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। उसके बाद 12,038 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान के साथ जापान दूसरे पायदान पर और 10,335 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान के साथ दक्षिण कोरिया तीसरे पायदान पर रहा।
एफटीए वार्ता के दौरान साझेदार देशों को पर्याप्त बाजार पहुंच प्रदान करने के लिए भारत के उच्च शुल्क में कटौती करना आवश्यक होता है। मगर एफटीए के तहत शुल्क में कटौती के कारण सरकार के शुल्क संग्रह में कमी आती है जिससे राजस्व का नुकसान होता है। यही कारण है कि राजस्व विभाग के लिए ऐसे व्यापार समझौते हमेशा से विवादास्पद मुद्दे रहे हैं। मगर इस बात को भी व्यापक तौर पर स्वीकार किया जाता है कि सीमा शुल्क को राजस्व सृजित करने वाले साधन के रूप में काम नहीं करना चाहिए।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत को सीमा शुल्क का नुकसान अधिक है क्योंकि हमारा बिना भेदभाव वाला (तरजीही देश) शुल्क अधिक (भारित औसत करीब 12 फीसदी) है। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान जैसे देशों ने कई एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं। वे अपने एफटीए साझेदार देशों से 80-90 फीसदी तक आयात करते हैं, जबकि हम एफटीए साझेदार देशों से महज 25 फीसदी आयात करते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद यह आंकड़ा 60 से 65 फीसदी तक बढ़ जाएगा।