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भारत में अधिक वृद्धि के साथ तेजी से घटेगी गरीबी

थॉमस पिकेटी पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के प्रोफेसर और वहां वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (डब्ल्यूआईएल) एवं वर्ल्ड इनइक्वैलिटी डेटाबेस के सह-संस्थापक भी रहे हैं।

Last Updated- December 14, 2024 | 10:15 AM IST
French Economist Thomas Piketty
French Economist Thomas Piketty

फ्रांस के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी आर्थिक असमानता, धन वितरण और पूंजीवाद पर अपने अभूतपूर्व शोध के लिए जाने जाते हैं। वह पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के प्रोफेसर और वहां वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (डब्ल्यूआईएल) एवं वर्ल्ड इनइक्वैलिटी डेटाबेस (डब्ल्यूआईडी) के सह-संस्थापक भी रहे हैं। पिकेटी के शोध ने वैश्विक स्तर पर एक नई बहस की शुरुआत की है और इस प्रकार वह आर्थिक समानता एवं सार्वजनिक नीति संबंधी चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। पिकेटी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र से विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:

आपके वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब ने इस साल के आरंभ में कहा था कि भारत में आय असमानता ब्रिटिश दौर से भी खराब स्थिति में है। तो क्या भारत में गरीबों की स्थिति औपनिवेशिक दौर से भी खराब है?

नहीं, इसका मतलब ऐसा नहीं है। भारत में लोगों की औसत आय और औसत धन-दौलत में औपनिवेशिक दौर के बाद काफी इजाफा हुआ है। मगर हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि हम कम असमानता के साथ और बेहतर कर सकते हैं। आज भारत में वृद्धि के लिए असमानता का मौजूदा स्तर आवश्यक नहीं है क्योंकि भारत कम असमानता के साथ विकास कर सकता है और गरीबी को तेजी से कम कर सकता है।

भारत के लिए असमानता का स्वीकार्य स्तर क्या है?

यूरोप में यह (शीर्ष 10 फीसदी आय हिस्सेदारी) 25 से 30 फीसदी होगा। यहां तक कि अमेरिका में भी यह शायद 40 से 50 फीसदी होगा जो यूरोप के मुकाबले अधिक असमान है। चीन में यह 40 फीसदी और भारत के लिए 30 से 40 फीसदी होगा। मगर भारत में फिलहाल यह आंकड़ा 55 से 60 फीसदी है। मैं इतना कहना चाहता हूं कि नए सिरे से वितरण करने और असमानता को कम करने की गुंजाइश मौजूद है।

इस असमानता की क्या वजहें हैं? क्या यह नीतियों से प्रेरित है?

यह काफी हद तक नीतियों से प्रेरित है। कुछ लोग कहेंगे कि जाति व्यवस्था जैसी ऐतिहासिक विरासत भी इसकी एक वजह है। मगर ईमानदारी से कहूं तो मैं उसमें अधिक यकीन नहीं करता क्योंकि मैं समझता हूं कि जब आप देशों की तुलना करते हैं तो आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि कुछ देश हमेशा असमान रहे हैं अथवा वे हमेशा असमान ही रहेंगे। ऐसा नहीं होता है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, राजनीतिक लामबंदी और संस्थाओं में बदलाव के जरिये चीजें तेजी से बदल सकती हैं। भारत ने असमानता से निपटने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया है और वह है आरक्षण व्यवस्था। एससी/एसटी के लिए आरक्षण, चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण आदि काफी दिलचस्प है। मुझे लगता है कि बाकी दुनिया को इस मामले में भारत से सीखना चाहिए।

असमानता को कम करने के लिए सरकार को किन प्रमुख सुधारों पर ध्यान देना चाहिए?

मैं भारत में कर न्याय के लिए एक महत्त्वपूर्ण योजना बनाने की सिफारिश करना चाहूंगा। पिछले 10 से 20 साल में सबसे अधिक लाभ उठाने वाले अमीर भारतीयों से कहा जाए कि वे अपने नए धन संचय का एक हिस्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में निवेश के लिए दें। कर्मियों को नौकरी से निकालना आसान बनाकर उत्पादकता अंतर को कम नहीं कर सकते। वह तो ऐसी योजनाओं से ही संभव हो सकेगा।

भारत में 15 लाख रुपये से अधिक आय पर 30 फीसदी कराधान का प्रावधान है। अमीर भारतीयों के लिए आयकर का आदर्श स्लैब क्या होना चाहिए?
असली समस्या यह है कि आम तौर पर अमीर लोग अधिक आय का खुलासा ही नहीं करते हैं। अगर आप शीर्ष अरबपतियों पर गौर करेंगे तो पता चलतेगा कि उनमें से कुछ हाल में भारत के बुनियादी ढांचे, शिक्षा व्यवस्था, कभी-कभी सरकार में संपर्क, सार्वजनिक खरीद बाजार आदि का उपयोग करके काफी अमीर बन गए हैं। मगर आयकर रिटर्न में खुलासा की गई आय वास्तव में 0.01 फीसदी होती है। ऐसे में शीर्ष अरबपतियों के लिए आयकर स्लैब कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि वास्तविक मुद्दा तो आय पर कर लगाने का है।

भारत 2047 तक विकसित देश बनना चाहता है, मगर वह प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से 141वें पायदान पर है। क्या पहले प्रति व्यक्ति आय में सुधार पर ध्यान देना चाहिए?

मुझे लगता है कि अगर भारत उसे वास्तविक प्राथमिकता देता है और उस दिशा में संसाधन लगाता है तो यह एक सही रणनीति है। अब जरा एक आंकड़े पर गौर करते हैं। भारत में कुल कर राजस्व फिलहाल जीडीपी का 13 से 14 फीसदी है। इतनी कम रकम से आप शिक्षा, पुलिस, न्याय और बुनियादी ढांचे के लिए पर्याप्त खर्च नहीं कर सकते। अगर ऐसा करते हैं तो आप लोगों को अच्छा भुगतान नहीं करते हैं। इसलिए आपको शिक्षा व्यवस्था और आवश्यक बुनियादी ढांचे को व्यवस्थित करना होगा। उसमें लोगों को शामिल करना होगा। ऐसा धीरे-धीरे ही किया जा सकता है और आपको उस दिशा में आगे बढ़ना होगा।

आपके शोध की आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि आपने आयकर आंकड़े को शामिल किया है, जबकि भारत जैसे देशों में विशाल अनौपचारित अर्थव्यवस्था है। इस पर आप क्या कहेंगे?

हमने उपलब्ध सभी डेटा स्रोतों को शामिल किया है। इसलिए हम स्पष्ट तौर पर घरेलू सर्वेक्षण, उपभोग सर्वेक्षण, रोजगार सर्वेक्षण, श्रम सर्वेक्षण आदि का उपयोग करते हैं, क्योंकि वास्तव में गरीबों और भारतीय मध्यवर्ग के एक बड़े तबके तक पहुंचने का यह एकमात्र तरीका है। हम राष्ट्रीय आंकड़ों का भी उपयोग करते हैं। उसे हम उपभोग सर्वेक्षण के आंकड़ों के साथ समेटने की कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभी वह मुश्किल भी होता है। हम आयकर आंकड़ों का भी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ऐसे देशों में जहां कर प्रशासन सही से काम नहीं करता है, वहां आयकर आंकड़ों से शीर्ष आय वर्ग के बारे में बेहतर जानकारी मिलती है।

सरकार का कहना है कि आपके डेटा में बहुत सारे कल्याणकारी कार्यक्रमों जैसे मुफ्त भोजन योजना और ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना के बारे में जानकारी नहीं है जो गरीबी दूर करने में मदद करती हैं?

हम इन आंकड़ों को ध्यान में रखने की कोशिश कर रहे हैं। हम हस्तांतरण से पहले और हस्तांतरण के बाद देखने की कोशिश कर रहे हैं। मगर किसी भी लिहाज से भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों परकाफी असमान दिखता है।

आप बजट पेश होने से ठीक पहले भारत आए हैं। क्या आपने सरकारी अधिकारियों को कोई सुझाव दिया है?

मैं समझता हूं कि वे आलोचना को काफी सकारात्मक तरीके से नहीं लेते हैं। मुझे लगता है कि वे अपना बेहतरीन करने की कोशिश कर रहे हैं और मैं केवल इतना कहना चाहूंगा कि काफी बेहतर करना संभव है।

First Published - December 14, 2024 | 10:14 AM IST

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