वाणिज्य विभाग सेवा व्यापार के आंकड़े को एक माह से कम अवधि में संकलित करने की रणनीति पर कार्य कर रहा है। इस मामले के जानकार एक व्यक्ति ने बताया कि इससे नीति निर्माण की प्रक्रिया के लिए कम समय में व्यापक आंकड़े उपलब्ध हो पाएंगे।
यह प्रयास भारतीय रिजर्व बैंक के सेवा व्यापार क्षेत्र के आंकड़े जारी करने की सीमा के मद्देनजर किया गया है। अभी यह आंकड़े दो माह पीछे आते हैं। इसके अलावा इस आंकड़े में क्षेत्र-वार या पूरे देश के स्तर की संख्याएं शामिल नहीं होतीं। दरअसल अंतरराष्ट्रीय वस्तु व्यापार और सेवा निर्यात व आयात की जिम्मेदारी रखने वाला वाणिज्य विभाग आमतौर पर केंद्रीय बैंक के आंकड़ों पर निर्भर रहता है।
जानकार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वाणिज्य विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत आने वाला वाणिज्यिक आसूचना एवं सांख्यिकी महानिदेशक (डीजीसीआईएस) इस मामले में एक तकनीकी समिति का समन्वय कर रहा है।
इस व्यक्ति ने बताया, ‘इस महीने के अंत तक क्षेत्र-वार और समग्र सेवा व्यापार आंकड़े को हासिल करने का विचार है। प्राथमिक सर्वेक्षणों के साथ-साथ वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) या दोनों के समन्वय से आंकड़ों को बेहतर क्षेत्र-वार ढंग से बनाना है। इस बारे में अभी अंतिम निर्णय किया जाना है।’ खबर प्रकाशित होने तक वाणिज्य विभाग ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों का जवाब नहीं दिया।
एक बार अंतिम रूप दिए जाने के बाद सेवा व्यापार आंकड़े को समग्र बनाया जाएगा। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत की कई देशों के साथ व्यापार समझौते के लिए बातचीत जारी है। दरअसल, भारत की नजर साल 2030 तक एक लाख करोड़ डॉलर के सेवा निर्यात पर है। वित्त वर्ष 24 में सेवा निर्यात 4.9 फीसदी बढ़कर 341.1 अरब डॉलर हो गया।
दिल्ली के थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक व पूर्व व्यापार अधिकारी अजय श्रीवास्तव ने बताया कि वस्तु व्यापार से सेवा व्यापार अलग है। वस्तु व्यापार के आंकड़ों का दस्तावेजीकरण सीमा शुल्क और बैंकों की विदेशी पूंजी के रसीदों के जरिये किया जा सकता है, लेकिन सेवा क्षेत्र को ट्रैक करना मुश्किल होता है।
कंपनियां सेवा निर्यात की सूचना को गोपनीयता के कारण साझा करने में आनाकानी करती हैं। श्रीवास्तव के मुताबिक अपर्याप्त आंकड़ों के कारण नीति निर्माताओं के लिए सेवा निर्यात संवर्द्धन के लिए समुचित नीतियां बनाना मुश्किल हो सकता है।
उन्होंने बताया, ‘जीएसटीएन आंकड़े, बैंक की रसीदें, सर्वे और प्रशासनिक रिकॉर्ड सेवा व्यापार की पूरी तस्वीर पेश कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसे आंकड़ों को जीएसटीएन आरबीआई के साथ साझा नहीं करता है और यह सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं। नीति निर्माताओँ के लिए इन स्रोतों के आंकड़ों का समन्वय बाजी पलटने वाला भी हो सकता है।’