अमेरिकी बाजार में पसरी मंदी से अब निजी इक्विटी (पीई) निवेशक भी खबरदार हो गए हैं।
उन्होंने भी निवेश के लिए अब ऐसे क्षेत्रों का रुख करना शुरू कर दिया है, जो कारोबार के लिए विदेशों खास तौर पर अमेरिका पर निर्भर नहीं हैं। निवेशकों ने ऊर्जा, दूरसंचार बुनियादी ढांचा, शिक्षा, मीडिया और मनोरंजन समेत उन उद्योगों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है, जिनके लिए देश में ही कारोबारी संभावनाएं हैं।
इस साल जनवरी से सितंबर के बीच निवेश के आंकड़े भी इस चलन की गवाही देते हैं। इस दौरान इन क्षेत्रों में कुल निवेश बढ़कर तकरीबन 16,600 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। पिछले साल इसी अवधि में निवेश का आंकड़ा केवल 6,700 करोड़ रुपये था।
निवेश हासिल करने वाले क्षेत्रों की फेहरिस्त में ऊर्जा का नाम सबसे आगे है। जनवरी से सितंबर के बीच इस क्षेत्र की कंपनियों में तकरीबन 7,500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। पिछले साल के शुरुआती नौ महीनों में इन कंपनियों में केवल 1,260 करोड़ रुपये का निवेश हुआ था।
दूरसंचार बुनियादी ढांचे की कंपनियों पर भी निवेशकों की नजर-ए-इनायत रही। इन कंपनियों ने 4,000 करोड़ रुपये बतौर निवेश बटोरे, जबकि पिछले साल उनमें 2,450 करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ था। मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में भी पिछले साल के मुकाबले कुछ ज्यादा निवेश हुआ। शिक्षा क्षेत्र की कंपनियों ने 585 करोड़ रुपये का निवेश बटोरा।
पीई अनुसंधान कंपनी वेंचर इंटेलिजेंस के मुख्य कार्यकारी अरुण नटराजन ने बताया कि पिछले दो महीनों में ऊर्जा और दूरसंचार बुनियादी ढांचे में पीई निवेश जबरदस्त तेजी के साथ बढ़ा। इसकी वजह यही है कि इनकी कंपनियां आम तौर पर घरेलू जरूरतों को ही पूरा करती हैं। अमेरिकी बाजार से इनका साबका कम ही पड़ता है।
बारिंग प्राइवेट इक्विटी इंडिया के निवेश प्रमुख कार्तिकेयन रंगनाथन ने बताया कि ऊर्जा के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा और बिजली से संबंधित उपकरण बनाने वाली कंपनियां निवेशकों की दुलारी बनी हुई हैं। बारिंग भी भारत में लगभग 100 करोड़ डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है, जिसका बड़ा हिस्सा ऊर्जा के क्षेत्र में ही जाएगा।
केपीएमजी के बुनियादी ढांचा सलाहकार समूह ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत को बिजली बनाने की अपनी क्षमता 2015 तक बढ़ाकर दोगुनी करनी होगी। फिलहाल यहां लगभग 135 गीगावाट बिजली का उत्पादन होता है। निजी क्षेत्र की कंपनियां अगले 5 से 7 साल में 80 गीगावाट की अतिरिक्त क्षमता हासिल करने के लिए योजनाएं तैयार कर चुकी हैं।
इनके लिए 96,000 करोड़ रुपये से भी अधिक पूंजी की जरूरत होगी। केपीएमजी को लगता है कि इसका 15 से 20 फीसद हिस्सा निजी इक्विटी निवेशकों की ओर से ही आएगा।
नटराजन के मुताबिक दूरसंचार बुनियादी ढांचे पर भी निवेश की बौछार हो रही है।
बाजार में नए ऑपरेटर आ रहे हैं, जिनकी वजह से इन कंपनियों का कारोबार और भी बढ़ेगा। नए 3 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के साथ भी इस क्षेत्र में गहमागहमी बढ़ने की पूरी उम्मीद है। इसकी शुरुआत भी अब तक हो चुकी है।
मिसाल के तौर पर आदित्य बिड़ला टेलीकॉम ने इस साल निजी इक्विटी साझेदारों से लगभग 3,000 करोड़ रुपये की रकम जुटाई है। उसके अलावा क्विपो टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर ने निजी इक्विटी निवेश से 900 करोड़ रुपये जुटाए हैं।