तमिलनाडु के एक नामचीन रेस्टोरेंट के प्रबंध निदेशक ने कोयंबत्तूर में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से माफी मांगकर राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। यदि हम इस मामले के राजनीतिक घटनाक्रम को एक तरफ रख दें तो भी इस घटना ने विभिन्न उत्पादों विशेष तौर पर खाद्य उत्पादों पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों को लेकर अस्पष्टता को एक बार फिर से उजागर किया है।
एक औद्योगिक कार्यक्रम में श्री अन्नपूर्णा होटल के प्रबंध निदेशक डी. श्रीनिवासन ने वित्त मंत्री से कहा था कि मिठाई पर 5 फीसदी, नमकीन पर 12 फीसदी और क्रीम वाले बन्स पर 18 फीसदी जीएसटी है जबकि बिना क्रीम के सामान्य बन पर कोई जीएसटी नहीं है। ग्राहक अक्सर शिकायत करते हुए कहते हैं कि ‘आप सिर्फ बन दीजिए हम क्रीम या जैम खुद ही लगा लेंगे’।
यह टिप्पणी सुनकर लोग हंस पड़े थे लेकिन सच यह है कि खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी की दरों को लेकर अस्पष्टता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वस्तुओं पर जीएसटी दरों के नामकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली (एचएसएन) संहिता पर आधारित हैं। श्रीनिवासन तमिलनाडु के होटल संघ के अध्यक्ष भी हैं।
हालांकि दरों का निर्धारण जितना आसान दिखता है उतना है नहीं। इन उत्पादों के सही एचएसएन कोड और उन पर लागू कर दरों के निर्धारण को लेकर कई विवाद खड़े हो चुके हैं।
आइए मिठाई, नमकीन और क्रीम वाले बन पर जीएसटी की दरों पर बात करते हैं। मिठाई और नमकीन दोनों का एचएसएन कोड – 21069099- है लेकिन अलग-अलग अनुसूचियों में आने की वजह से उन पर अलग-अलग दर लगती है। मिठाई अनुसूची 1 में आती है और उस पर 5 फीसदी जीएसटी लगता है। लेकिन नमकीन अनुसूची 2 में आती है और उस पर 12 फीसदी जीएसटी लगता है। क्रीम युक्त बन और केवल बन के एचएसएन कोड चार अंकों तक एक जैसे हैं, लेकिन क्रीम वाले बन पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है, जबकि सामान्य बन को अधिसूचना जारी करके छूट दे दी गई।
यह पहली बार नहीं है कि खाद्य उत्पादों पर जीएसटी दरों का मामला उठा है। इन विवादों पर कई बार सुनवाई हुई है या किसी राज्य के अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएआर) सहित विभिन्न मंचों पर ऐसे विवादों की सुनवाई हुई है या सुनवाई हो रही है।
गुजरात का अपीलेट अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएएआर) एक प्रसिद्ध फैसले में कह चुका है कि पापड़ ‘फ्रायम्स’ पर कोई जीसएटी नहीं लगेगा क्योंकि ये पारंपरिक गोल पापड़ की तरह है। इस मामले में अपीलीय प्राधिकरण ने एएआर के फ्रायम्स पर 18 फीसदी जीएसटी लगने के फैसले को पलट दिया था। एएएआर ने स्पष्ट किया कि फ्रायम्स एक ब्रांड है और यह किसी उत्पाद का जेनरिक नाम नहीं है।
फैसले के अनुसार फ्रायम्स में उत्पाद का बुनियादी स्वरूप नहीं बदलता है और यह पापड़ ही रहता है। इस बारे में कुछ लोगों ने सुझाव दिया था कि पापड़ पर उसके आकार के अनुसार जीएसटी लगना चाहिए। इस बारे में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने वर्गीकरण कर मामले को स्पष्ट किया था। सीबीआईसी ने ट्वीट कर बताया कि पापड़ के आकार के आधार पर जीएसटी नहीं लगता है। सीबीआईसी ने ट्वीट किया, ‘पापड़ का कोई भी नाम हो, उसे जीएसटी से छूट प्राप्त है।’
इसी तरह अंडे, ऐपी फिज, रवा इडली मिक्स, चीज़ बॉल, सत्तू जैसे और उत्पादों को लेकर विवाद रहे हैं। इस बारे में डेलॉयट इंडिया के साझेदार, अप्रत्यक्ष कर, हरप्रीत सिंह ने बताया कि विवादों का कारण अलग-अलग खाद्य उत्पादों पर 5 फीसदी, 12 फीसदी और 18 फीसदी जैसी अलग-अलग दरें लागू होना है।
उन्होंने बताया, ‘इसके अलावा सामग्री, मिक्स, नामकरण और आखिरी में वस्तु के इस्तेमाल होने से कई बार जटिलताएं बढ़ जाती हैं।’ परामर्श मुहैया कराने वाली एकेएम ग्लोबल के पार्टनर-टैक्स संदीप सिंघल ने बताया कि खाने की वस्तुओं पर जीएसटी की दरें असमान और अस्पष्ट होने से कारोबार और उपभोक्ताओं दोनों के लिए पर्याप्त असमंजस बढ़ जाता है।
उन्होंने बताया कि ब्रांडिंग, पैकेजिंग और उत्पाद प्रसंस्कर्ता या गैरप्रसंस्कृत होने के कारण जटिलताएं बढ़ जाती हैं और इससे विवाद बढ़ता है।