भारत में अक्टूबर महीने में फॉर्मल हायरिंग (नई नियुक्तियों) की संख्या में भारी गिरावट देखी गई, जिससे इस महीने फॉर्मल लेबर मार्केट में सुस्ती का संकेत मिलता है। कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) के तहत नए सब्सक्राइबर्स की संख्या अक्टूबर में 20.8 प्रतिशत घटकर 7.5 लाख रह गई, जो सात महीनों में सबसे कम है। सितंबर में यह संख्या 9.47 लाख थी। यह जानकारी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा बुधवार को जारी मासिक पेरोल डेटा से सामने आई।
EPFO डेटा को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह फॉर्मल लेबर मार्केट की स्थिति को दर्शाता है। बता दें कि केवल फॉर्मल वर्कफोर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ (social security benefits) और श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा (protection under labour laws) मिलती है।
अक्टूबर में 7.5 लाख नए EPF सब्सक्राइबर्स में से 18-25 वर्ष के युवाओं की हिस्सेदारी घटकर 58.5 प्रतिशत (4,38,700) रह गई, जो सितंबर में 59.94 प्रतिशत (5,67,700) थी। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इस आयु वर्ग के सब्सक्राइबर्स आमतौर पर पहली बार श्रम बाजार (labour market) में प्रवेश करते हैं, जिससे श्रम बाजार की मजबूती का पता चलता है।
इस बीच, नए सब्सक्राइबर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी पिछले महीने के 26.1 प्रतिशत (247,000) से बढ़कर 27.9 प्रतिशत (209,000) हो गई। श्रम मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “महिला सदस्यों की बढ़ती संख्या समावेशी (inclusive) और विविध कार्यबल (diverse workforce) की ओर बड़े बदलाव का संकेत है।”
अक्टूबर में नेट पेरोल एडिशन- जिसे नए सब्सक्राइबर्स, सब्सक्राइबर्स के बाहर होने और पुराने सब्सक्राइबर्स की वापसी के आधार पर तय किया जाता है- 13.4 लाख रही, जो सितंबर में 14.1 लाख से लगभग 5 प्रतिशत कम है।
हालांकि, शुद्ध मासिक पेरोल डेटा प्रारंभिक होते हैं और अक्सर अगले महीने में बड़े बदलाव होते हैं। इसलिए, नए EPF सब्सक्राइबर्स के आंकड़े को नेट एडिशन की तुलना में अधिक भरोसेमंद माना जाता है।
श्रम मंत्रालय ने कहा, “पेरोल डेटा दर्शाता है कि 13 लाख सदस्य EPFO से बाहर निकल गए और बाद में EPFO में फिर से शामिल हो गए। इन सदस्यों ने अपनी नौकरियां बदल लीं और EPFO के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों में फिर से शामिल हो गए। इन्होंने अंतिम निपटान के लिए आवेदन करने की जगह अपनी बचत को ट्रांसफर करने का विकल्प चुना।”
प्राइवेट एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक, अक्टूबर में श्रम बाजार की स्थिति खराब रही। बेरोजगारी दर सितंबर के 7.8% से बढ़कर अक्टूबर में 8.7% हो गई। बता दें कि यह एजेंसी अपना कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (CPHS) करती है।