‘मुफ्तखोरी’ की बहस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि अगर चुनावों के दौरान राजनीतिक दल इस उम्मीद में लोगों से वादे करते हैं कि वे इसके बदले उन्हें फायदा पहुंचाएंगे तो ये वादे विधानसभाओं में पारित बजट प्रावधानों के जरिये पूरे होने चाहिए।
वित्त मंत्री ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा, ‘अगर चुनावों के समय लोगों से कोई वादा इस उम्मीद में किया जाता है कि वे आपको फायदा पहुंचाएंगे तो सत्ता में आने के बाद एक जिम्मेदार पार्टी के रूप में इसके लिए बजट में एक प्रावधान बनाएं। ’
उन्होंने कहा, ‘इसका भुगतान बजट में किए गए प्रावधान के जरिये होना चाहिए। किसी मुफ्त की रेवड़ी के वादे का बोझ अन्य किसी पर नहीं डाला जा सकता है।’
इस बीच शीर्ष अदालत ने तीन न्यायाधीशों के पीठ से इस मुद्दे पर एक पिछले आदेश की समीक्षा करने को कहा है, जिसमें कहा गया था कि ऐसी मुफ्त पेशकश भ्रष्ट गतिविधियां नहीं हैं। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तब पहुंचा, जब उसने इस मामले पर एक जनहित याचिका स्वीकार की। इस याचिका में अनुचित मुफ्त की रेवड़ियों पर अंकुश लगाने की मांग की गई थी। यह बहस तब शुरू हुई, जब प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीतिक दल ‘रेवड़ी संस्कृति’ को बढ़ावा दे रहे हैं, जो देश के विकास में एक अवरोध है।
उन्होंने कहा, ‘यह भारत के लिए चर्चा का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और हम सभी को इस चर्चा में शामिल होना चाहिए। हमने सरकार की तरफ से अपने विचार व्यक्त किए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘लोगों को सशक्त बनाना और यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सभी तरह की सहायता मुहैया कराना एक अलग चीज है कि वे गरीबी के दलदल से बाहर आ जाएं और उसके बाद किसी पर आश्रित न रहें। लेकिन अगर आप हक के लिहाज से इस बारे में बात करते हैं तो यह पूरी तरह अलग चीज है।’यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) पर शुल्क लगाने या नहीं लगाने पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के विमर्श पत्र पर बोलते हुए वित्त मंत्री ने मंत्रालय का यह रुख दोहराया कि यूपीआई को जनता की सेवा के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा, ‘लोगों की इस तक मुफ्त पहुंच होनी चाहिए ताकि लोगों के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण आकर्षक बन सके। डिजिटलीकरण के जरिये हम पारदर्शिता हासिल करते हैं, जो आवश्यक है। इसलिए हमारा मानना है कि इस पर शुल्क लगाने का अभी उपयुक्त समय नहीं है।’
पहली तिमाही में 15.6 फीसदी रह सकती वृद्धि दर
वित्त मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 15.6 फीसदी रह सकती है। अप्रैल-जून तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े अगले सप्ताह आने वाले हैं। इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 23 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी में वृद्धि 16.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जीडीपी से जुड़े ज्यादातर घटकों जैसे निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई), सकल नियत पूंजी सृजन (जीएफसीएफ) और सरकार के अंतिम खपत (जीएफसीई) में मजबूत सुधार नजर आ रहा है। वहीं जिंस के ज्यादा दाम और रुपये में गिरावट की वजह से व्यापार प्रभावित हुआ है। ध्यान में रखना होगा कि वित्त मंत्रालय द्वारा जीडीपी में 15.6 फीसदी वृद्धि का लगाया गया अनुमान उसके द्वारा नजर रखे जा रहे उच्च संकेतकों के आधार पर है।