मंदी से निपटने के लिए कई मोर्चों पर एक साथ काम करना पड़ता है। हालात से घबरा कर काम समेट लेने में या कारोबार कम कर देने से हल नहीं निकलता है।
अच्छे दिन देखे हैं, तो बुरे के लिए भी तैयार रहना पड़ता है। यह कहना है लखनऊ में प्रिंटिंग व्यवसायी आलोक सक्सेना का। एस.के. प्रिंटर्स नाम से प्रिंटिंग कारोबार चलाने वाले सक्सेना कहते हैं कि मंदी के समय में सबसे जरूरी है, खर्चों में कटौती और अनावश्यक व्यय पर रोक।
कागज के दामों में आई तेजी और बाजार में प्रतियोगिता बढ़ने से प्रिंटिंग कारोबार बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा है। लेकिन इससे हार मानने की बजाए, इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए। मंदी की आहट के साथ ही आलोक ने कई उपाय अपनाने शुरू कर दिए। सबसे पहले तो ऑर्डर के साथ एडवांस लेने का काम शुरू किया।
इससे कच्चे माल की खरीद के लिए अपना पैसा नही फंसाना पड़ता है। हालांकि कागज के दामों में आई तेजी सबसे बड़ी समस्या है। अक्सर ऐसा हुआ कि ऑर्डर लेते समय कागज का रेट कुछ और था, जो माल तैयार करते-करते बढ़ गया। ऐसे हालात में माल तो तय किए गए दाम पर ही देना होता है, नतीजा घाटा उठाना पड़ता है।
इन परिस्थितियों से निबटने के लिए आलोक ने कागज की एडवांस खरीद का फैसला किया। उन्होंने बताया – मैं अपनी यूनिट में ठीक-ठाक मात्रा में कागज पहले से खरीद कर रखता हूं, जिसके चलते घाटा नहीं होता है। जिस तरह कागज के रेट ऊपर जा रहे हैं, उसमें यह तरकीब काम आ रही है।
मंदी से निबटने के अन्य उपायों के तहत यूनिट में पूर्णकालिक रूप से काम कर रहे लोगों में से केवल दो को रखा है, बाकी 6 को हटा दिया है, क्योंकि ऑर्डर भी कम मिल रहे हैं।
हां, जब जरूरत पड़ती है, तब पुराने कर्मचारियों की सेवाएं ठेके पर उपलब्ध हो जाती हैं। स्थायी स्टाफ रख कर खर्चे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।
हाल ही में आलोक ने एक नयी और अत्याधुनिक फोर कलर ऑफसेट मशीन और खरीदी है। इस मशीन के आने के बाद काम और बढ़ने की आशा थी, लेकिन मंदी ने सब पर पानी फेर दिया है।
मशीन के लिए बैंक से लोन लिया था, अब उसकी किस्तें निबटाने का संकट है, सो प्र्रबंधन से बात कर किस्तों की मियाद बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूं।
ऑर्डर में कमी आने के चलते आलोक ने अपने ऑफिस और कारखाने को खोलने और बंद करने के समय में भी तब्दीली कर दी है।
बिजली की बचत और अन्य खर्चों में कटौती का यह भी एक तरीका है। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी समस्या प्रिंटिंग उद्योग को तब होती है, जब तैयार माल को उठाने से पार्टी मुकर जाती है।
इससे बचने के लिए ऑर्डर के समय ही आधा पैसा एडवांस लिया जा रहा है। माल के तैयार करने तक कोशिश यह होती है कि कम से कम 75 फीसदी पैसा आ जाए।
उनका कहना है कि अन्य उद्योगों की तरह प्रिटिंग व्यवसाय में दूसरे के लिए तैयार किए गए माल का कोई उपयोग नहीं हो सकता है और ऐसे में उसे रद्दी के भाव बेचना पड़ता है।
मंदी से बचने के लिए खचॅ में कटौती
अस्थायी कर्मचारियों की करनी पड़ी छंटनी
कच्चा माल पहले से खरीदकर रखा स्टॉक
ऑर्डर के समय एडवांस लेने से माल फंसने की समस्या नहीं