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ब्याज दर वायदा का फिर होगा आगाज

Last Updated- December 06, 2022 | 1:03 AM IST

जून 2003 में इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स के दोषपूर्ण लांच के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक बार फिर से इसे उतारने या रिलांच करने का निर्णय लिया है।


तब इस प्रॉडक्ट की बिक्री इसलिए नहीं हो सकी थी कि इसकी डिजाइन में कुछ खामी थी और इसके प्राइस बेंचमार्क में भी कुछ कमी थी।दरअसल, इंटरेस्ट रेट फ्यूचर एक मानक समझौता होता है जिसके तहत भविष्य के किसी अंतर्निहित संपत्ति का कारोबार (लेन-देन) वर्तमान में ही एक तयशुदा कीमत पर किया जाता है।


इसका इस्तेमाल देश के ब्याज दर की तरलता को छिपाने के लिए किया जाता है। इस प्रॉडक्ट को पुर्नजीवित करने के लिए आरबीआई ने एकआंतरिक कार्यदल बनाया है।इसके अलावा, रिजर्व बैंक की योजना है कि 2008-09 के आखिर तक स्ट्रिप्स (सेपरेट ट्रेडिंग फॉर रजिस्टर्ड इंटरेस्ट एंड प्रिंसिपल ऑफ सिक्योरिटीज) को सरकारी प्रतिभूतियों में भी लागू कर दिया जाए।


2006 से लागू हो चुका सरकारी प्रतिभूति कानून 2006 पहले से ही इसके लिए जरूरी कानूनी आधार मुहैया करा रहा है। वास्तव में, स्ट्रिप्स किसी प्रतिभूति के मूल और ब्याज वाले हिस्से को अलग करने की एक प्रक्रिया है, जिसे बाद में सेकेंडरी मार्केट में अलग-अलग करके भी बेचा जा सकता है।


सरकारी प्रपत्र को रखने पर ब्याज दर और मूलधन की अलग-अलग खरीद और बिक्री की जा सकती है। इसका मतलब हुआ कि यह निवेशकों की अतिरिक्त तरलता को मंजूरी देता है। इसके चलते यह योजना  उन निवेशकों के बीच काफी लोकप्रिय है जो भविष्य में एक निश्चित समय पर तय राशि का भुगतान चाहते हैं। इसे जीरो कूपन सिक्योरिटीज भी कहा जाता है।


वह इसलिए कि केवल एक बार स्ट्रीप्स योजना की मैच्योरिटी के बाद ही निवेशक को एकमुश्त राशि का भुगतान हो पाता है। पेमेंट और सेटेलमेंट सिस्टम्स एक्ट-2007 के लागू हो जाने के बाद आरबीआई की योजना है कि अब ओवर द काउंटर रुपी डेरिवेटिव्स के लिए अलग से एक क्लीयरिंग और सेटलमेंट व्यवस्था लागू किया जाए।


ओवर द काउंटर डेरिवेटिव्स दरअसल में स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा खरीदा या बेचा जाता है। ज्यादातर यह द्विपक्षीय कारोबार ही होता है जिसमें ब्याज दर की अदला-बदली और रुपये और डॉलर का विनिमय होता है। रिजर्व बैंक ने नामित बैंकों के लिए बातचीत का तंत्र खड़ा करने का निर्णय लिया है।

First Published - May 1, 2008 | 11:14 PM IST

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