सीआरआर कटौती और पी नोट्स से हटी पाबंदी की दवा भी विदेशी मंदी के संक्रमण से भारतीय शेयर बाजारों को बचा न सकी।
देसी बाजार भी मंगलवार को यूरोपीय बाजारों के साथ कदमताल करते नजर आए। यूरोपीय बाजार कारोबार की शुरुआत में बढ़त के साथ खुले, ठीक वैसे ही बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स सोमवार के 11801 अंकों की तुलना में बढ़कर एक समय में 12181 अंकों तक पहुंच गया।
इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी एक समय में 118 अंकों की बढ़त पर था। लेकिन जैसे-जैसे यूरोपीय बाजारों में गिरावट की खबरें आने लगीं, यहां भी शेयर बाजार लुढ़कने लगे। इसके चलते कारोबार समाप्ति पर सेंसेक्स 106 अंकों की गिरावट के साथ तो निफ्टी 4 अंकों की मामूली बढ़त के साथ बंद हुआ।
एनएचपीसी ने आईपीओ टाला
सरकारी स्वामित्व वाली पनबिजली उत्पादनकर्ता नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) ने पूंजी बाजार में कदम रखने की योजना टाल दी है। कंपनी ने 1,670 करोड़ रुपये के आईपीओ के साथ पूंजी बाजार में कदम रखने की योजना बनाई थी।
बिजली सचिव अनिल राजदान ने बताया- सरकार द्वारा सभी मंजूरियां मिलने के बाद एनएचपीसी पूंजी बाजार में कदम रखेगी। गौरतलब है कि कंपनी की पूंजी बाजार से 1,670 करोड़ रुपये जुटाने के लिए 13 अक्टूबर से 17 अक्टूबर तक आईपीओ लाने की योजना थी।
एक भारतीय हैं बुश के तारणहार
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आए भूचाल को शांत करने का जिम्मा बुश प्रशासन ने भारतीय तारणहार को सौंपा है। तमाम अड़चनों और अटकलों के बाद जिस 700 अरब डॉलर के बेल आउट पैकेज को मंजूरी दी गई है, उसका जिम्मा भारतीय मूल के नील कशकरी को सौंपा गया है।
पैंतीस वर्षीय कशकरी का जन्म तो अमेरिका में हुआ था पर उनके पिता चमन कशकरी मूल रूप से जम्मू कश्मीर के हैं। प्रमुख निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स में काम कर चुके नील पिछले दो सालों से अमेरिका के वित्त मंत्रालय में काम कर रहे हैं।
अमेरिकी बाजार औंधे मुंह गिरा
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में बह रही मंदी की बयार से वॉल स्ट्रीट का डाउ जोन्स चार साल में पहली बार 10,000 अंक से नीचे आ गया। अमेरिकी सरकार द्वारा दिए गए 700 अरब डॉलर के पैकेज का बाजार पर फिलहाल कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है क्योंकि ट्रेडरों को लगता है कि इस पैकेज का असर कुछ समय बाद पड़ेगा।
कारोबार के दौरान डाउ जोन्स ने 800 से अधिक रिकॉर्ड अंक की गिरावट दर्ज की। इसके अलावा, यूरोप और एशिया के भी बाजारों में गिरावट का दौर जारी रहा।
मंदी ने ली भारतीय परिवार की जान
अमेरिकी आर्थिक मंदी की चपेट में आए एक अप्रवासी भारतीय ने शेयर बाजार में हुए भारी नुकसान के बाद छह सदस्यों के अपने पूरे परिवार का सफाया कर दिया। इनमें उसकी पत्नी, तीन पुत्र और उसकी सास शामिल हैं।
घटना को अंजाम देने के बाद उसने खुद को भी गोली मार ली। कभी लंदन के एक उद्यम में एक बार में ही 12 लाख अमेरिकी डॉलर बनाने वाला कार्तिक राजाराम (45) एमबीए की शिक्षा प्राप्त था। उसने मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के दौरान संयुक्त राष्ट्र हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी कोई कदम नहीं उठाया जबकि इसका प्रतिकूल असर विकासशील देशों पर पड़ रहा है। दुनिया भले ही खत्म नहीं हुई हो लेकिन वॉल स्ट्रीट की दुनिया निश्चित रूप से तबाह हो गई है। दुनिया के दिग्गज धूल फांकते रहे और यही धूल अब हम शेष दुनिया के मुंह में है। मुक्त बाजार अपने अंत को आ गया है। – (संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत निरुपम सेन का वक्तव्य)
जी -7 काम नहीं कर रहा है। दुनिया के आर्थिक संकट को सुलझाने की दृष्टि से समूह सात (जी-7) को विस्तारित संचालन समूह में बदल दिया जाए, जिसमें भारत जैसे देश शामिल हों। हम पुरानी को फिर बनाते हुए नई दुनिया नहीं बनाएंगे। – रॉबर्ट जॉएलिक, विश्व बैंक के अध्यक्ष
लोगों को विश्वास करना चाहिए कि जिस विधेयक (700 अरब डॉलर का राहत पैकेज) पर मैंने दस्तखत किए हैं, वह एक बड़ा कदम है। – जॉर्ज बुश, अमेरिकी राष्ट्रपति