अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल में कहा था कि मध्यावधि के हिसाब से बाहरी क्षेत्र के संतुलन को आरामदायक स्तर पर बनाए रखने के लिए भारत को धीरे-धीरे अपनी राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन नीति को वापस लेने, निर्यात संबंधी बुनियादी ढांचे का विकास करने, निर्यात को सतत बढ़ावा देने के लिए प्रमुख कारोबारी साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता तेज करने की जरूरत है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल में रीपो रेट में बढ़ोतरी के साथ महामारी के दौरान दरों में की गई सभी कटौती वापस ले ली गई है। राजकोषीय मोर्चे को देखें तो अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत की गई घोषणाएं ज्यादातर कर्ज और ऋण गारंटी से जुड़ी थीं।
अनुमानों में कहा गया है कि मार्च और मई 2020 में आत्मनिर्भर भारत के तहत घोषित 21 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय आवंटन 3 लाख करोड़ रुपये से भी कम का था। जून 2021 में घोषित 6.3 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज में वित्तीय आवंटन 50,000 करोड़ रुपये से भी कम था। और उसके बाद सीधे उठाए गए राजकोषीय कदम में सिर्फ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत दिया गया मुफ्त अनाज है। इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘महामारी के दौरान केंद्र द्वारा दिए गए राजकोषीय प्रोत्साहन को अन्य देशों के सापेक्ष मापा गया है। इसमें सबसे बड़ा कार्यक्रम मुफ्त खाद्यान्न योजना अभी भी जारी है और इसे 22 सितंबर तक के लिए बढ़ा भी दिया गया है।’
इस साल उठाए गए वित्तीय कदमों में बजट की तुलना में उर्वरक सब्सिडी का ज्यादा आवंटन और पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती शामिल है। यह यूरोप में युद्ध के कारण बढ़ी महंगाई को काबू में करने के लिए किया गया है, महामारी के कारण नहीं।
नायर ने कहा, ‘रूस और यूक्रेन में युद्ध के कारण उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने की जरूरत पड़ी है। अगर व्यय में यह बढ़ोतरी नहीं हुई होती तो सरकार संभवतः इस साल वित्तीय समेकन को उचित स्तर पर बनाए रख पाती।’
बहरहाल राजकोषीय स्थिति को एक अन्य तरीके से भी देखने की जरूरत है, वह है राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3 प्रतिशत पर रखना। यह राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) ऐक्ट में अनिवार्य किया गया था, जिसके लिए अब कोई आधार नहीं है। इस अधिनियम में अब तक कोई संशोधन नहीं किया गया है, लेकिन वित्त वर्ष 26 तक के लिए मध्यावधि के हिसाब से राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 4.5 प्रतिशत है।
डॉ बीआर अंबेडकर स्कूल आफ इकोनॉमिक्स, बेंगलूरु के कुलपति एनआर भानुमूर्ति ने कहा, ‘राजकोषीय नीति में हम एक अहम पहलू की उपेक्षा कर देते हैं, वह हैं सार्वजनिक ऋण के आंकड़े। अभी सरकार का कर्ज जीडीपी अनुपात 96 प्रतिशत पर है, जबकि इसका इच्छित स्तर 60 प्रतिशत होता है। इस पर गौर किए बगैर राजकोषीय समस्या नहीं सुलझ सकती है। दुर्भाग्य से भारत में हम राजकोषीय नीति को कम अवधि के मसले के रूप में देखते हैं।’
भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष ने कहा, ‘सरकार ने भले ही बहुत सारे व्यय की प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन राजकोषीय स्थिति अच्छी है।
