इस समय सबके जहन में यह सवाल रह रह कर उठा रहा है कि क्या भारत दिनोंदिन गहराते वैश्विक वित्त बाजार के संकट से अप्रभावित रह पाएगा।
अगर सिटी ग्रुप के संवदेनशीलता सूचकांक को आधार माना जाए तो एशियाई अर्थव्यवस्था में भारत इन संकटों के प्रति अधिक संवेदनशील है। एशिया में जापान को छोड़कर चीन की अर्थव्यवस्था इस संकट के प्रति सबसे अधिक लचीली है जबकि ब्राजील,रूस,चीन और भारत (ब्रिक्स) देशों में भारत सबसे नीचे है।
सिटीग्रुप का आकलन बताता है कि भारत में कुछ बाहरी फाइनेंस का फॉरेक्स रिजर्व से अनुपात काफी अधिक है। साथ ही उसकी मोबाइल कैपिटल का स्तर रिजर्व से अधिक है। यह उसके लिए सबसे नकारात्मक बात है। इसी के चलते वैश्विक संकट के प्रति यहां की अर्थव्यवस्था बेहद संवेदनशील है।
2008 में भारत की कुल बाहरी फाइनेंसिंग 63.7 अरब डॉलर (3.05 लाख करोड़)(करंट एकाउंट का घाटा और डेट रीपेमेंट) की रही जो उसके विदेशी मुद्रा के भंडार का 21 फीसदी है। यही वजह है कि भारत वैश्विक संकट के प्रति अधिक संवेदनशील है।
हालांकि एशियाई अर्थव्यवस्था में वैश्विक संकट के लिहाज से कोरिया और वियेतनाम सबसे अधिक संवेदनशील है। दोनों की कुल बाहरी फाइनेंसिंग उनके विदेशी मुद्रा के भंडार की तुलना में क्रमश: 95 और 64 फीसदी है। सिटीग्रुप के अनुसार सिंगापुर (9 फीसदी), हांगकांग (15 फीसदी ) और चीन (19 फीसदी) की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक लचीली है।
मोबाइल कैपिटल में शॉर्ट टर्म डेट और शेयर व बांड की विदेशी हिस्सेदारी शामिल है। सिटी ग्रुप के अनुसार भारत का शॉर्ट टर्म डेट 36.6 (17.53 लाख करोड़ रुपये)अरब डॉलर का है और स्टॉक और बांड में विदेशी हिस्सेदारी क्रमश: 140 अरब डॉलर (6.7 लाख करोड़ रुपये) और पांच अरब डॉलर (23,955करोड़ रुपये)की है।
भारत का मोबाइल कैपिटल एकाउंट उसके विदेशी मुद्रा के भंडार का 59 फीसदी है। इसके चलते एकाएक विदेशी मुद्रा के देश से बाहर जाने पर देश को खासी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसका सीधा असर रुपये पर पड़ेगा।
विदेशी मुद्रा सलाहकार फर्म बेसिक्सएफएक्स के सीईओ केएन डे ने बताया कि हमारे विदेशी मुद्रा के भंडार कैपिटल फ्लो के जरिए बने हैं न कि बचत के चलते इसलिए वैश्विक संकट के लिहाज से हमारी अर्थव्यवस्था संवदेनशील बनी रहेगी। डे के अनुसार देश से पूंजी बाहर जाने की स्थिति में रुपया डॉलर के मुकाबले 50 रुपये तक जा सकता है।
सिटीग्रुप ने भारत बाजार में एफआईआई की हिस्सेदारी 140 अरब डॉलर होने का अनुमान लगाया है। एक घरेलू निवेश बैंकर ने इस बारे में बताया कि वैश्विक वित्त बाजार में मंडाराया संकट और गहराने के आसार हैं। इसके चलते अगर एफआईआई बड़ी मात्रा में बिकवाली करते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन इससे भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है।
हालांकि रुपये के कमजोर होने से एफआईआई और हेज फंडों का बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। और शेयर कीमतों में होने वाली गिरावट से उनकी परेशानियों में और इजाफा ही होगा। लेकिन इस बारे में जेपी मोर्गन के सीईओर कृष्णमूर्ति विजयन ने बताया कि विनिमय दर का महत्व उस समय अधिक होता है जब पैसा यहां आने की प्रतिक्षा में हो।
लेकिन जब बिकवाली हो रही है तो इसके कोई मायने नहीं हैं। सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के वित्तीय संकट भविष्य चाहे जो भी वैश्विक बाजार की हालत बदलेगी। इस संकट से तरलता संकुचित हो जाएगी और इससे वैश्विक परिसंपत्तियों के अवमूल्यन की दर धीमी होगी। एक घरेलू दलाल फर्म के फंड मैनेजर ने बताया कि भारतीय बाजार में हेज फंड की बिकवाली किसी समुद्र में पत्थर फेंकना जैसा ही है।