प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के नव नियुक्त चेयरमैन एस महेंद्र देव का मानना है कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल कर सकता है। संजीव मुखर्जी और इंदिवजल धस्माना ने उनसे रोजगार, विनिर्माण, अत्यंत गरीबी एवं आबादी नियंत्रण रणनीतियों पर चर्चा की। प्रमुख अंशः
क्या भारत 2047 तक विकसित देश का दर्जा पाने में सफल हो पाएगा?
भारत प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयासरत है। कुछ अनुमानों के अनुसार यह लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को 11-12 प्रतिशत नॉमिनल वृद्धि दर और 7-8 प्रतिशत वास्तविक वृद्धि दर के साथ आर्थिक तरक्की करनी होगी। निवेश और निर्यात आर्थिक वृद्धि के दो प्रमुख स्तंभ हैं। सरकार ने पिछले कुछ बजट में पूंजीगत व्यय पर जोर दिया है। बुनियादी ढांचे के तेज विकास से अधिकांश क्षेत्रों पर सकारात्मक असर होगा। मांग बढ़ेगी तो निजी निवेश और क्षमता का उपयोग भी बढ़ेगा। वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत के लिए कई अवसर मौजूद हैं, जो उसे 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगा।
समावेशी विकास और टिकाऊ वृद्धि दर हासिल करने के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं?
रोजगार की मात्रा एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करना समावेशी विकास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू है। कृषि से लेकर उद्योग और सेवाओं तक ढांचागत बदलाव से आने वाले समय में रोजगार की गुणवत्ता बढ़ेगी। यह दृष्टिकोण औपचारिक क्षेत्र की रोजगार सृजन में हिस्सेदारी बढ़ाने और इसके साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र की उत्पादकता में इजाफा करने में मददगार होगा। युवाओं को हुनर और बिना हुनर वाले दोनों प्रकार के रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। सरकार द्वारा कार्य कुशलता में सुधार की दिशा में किया जा रहा प्रयास रोजगार करने की क्षमता बढ़ाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। एआई और आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) जैसी आधुनिक तकनीक कुछ खास गतिविधियों की मांग बढ़ाती है जबकि कुछ अन्य गतिविधियों की मांग कम कर देती है। भारत में पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण सहित कई कल्याणकारी योजनाएं हैं, जो समावेशी विकास को बढ़ावा देंगी। जहां तक इन तमाम प्रयासों को टिकाऊ बनाने की बात है तो भारत ऊंची वृद्धि दर हासिल करने के साथ ही कार्बन उत्सर्जन घटाने एवं पर्यावरण वहनीयता स्थापित करने में विश्वास रखता है।
भारत के जीडीपी में 2047 तक विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी मौजूदा 16-17 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है?
विनिर्माण गतिविधियां तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तरफ द्रुत गति से स्थानांतरित हो रही हैं। भारत को भी इस रुझान से फायदा मिल सकता है। यह भारत को परंपरागत उद्योगों को दोबारा विकसित करने और वैश्विक मूल्य श्रृंखला का हिस्सा बनने का अवसर देता है। वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों के बावजूद भारत में सेवा क्षेत्र के साथ विनिर्माण निर्यात की भी काफी संभावनाएं मौजूद हैं। हरित ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने का अवसर भी हमारे लिए उपलब्ध है। एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि क्षेत्र के बाद एमएसएमई रोजगार के अवसर मुहैया कराने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
क्या वित्त वर्ष 2026 में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं ग्रामीण उपभोग आर्थिक वृद्धि में दमदार भूमिका निभाएगा?
पिछले आठ वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र की औसत वृद्धि दर सालाना 4.6 प्रतिशत रही है। वित्त वर्ष 2025 में भी 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इसने 6.4 प्रतिशत सकल मूल्यवर्द्धन हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मौसम विभाग ने इस वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा होने का अनुमान जताया है जिससे कृषि वृद्धि दर, ग्रामीण उपभोग और मुद्रास्फीति कम करने में मदद मिलेगी। इसे देखते हुए हमें पूरी उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन दमदार रहेगा।
शहरी क्षेत्र में मांग कमजोर रही है। इसे सुधारने के लिए क्या किया जा सकता है?
बजट में कर प्रोत्साहन, आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती और सरकार की तरफ से पूंजीगत व्यय बढ़ाने से शहरी क्षेत्र में मांग मजबूत होनी चाहिए। मई 2025 में सेवा क्षेत्र का पीएमआई 58.8 प्रतिशत के साथ मजबूत स्तर पर रहा है। सेवा क्षेत्र में तेजी बरकरार रहने की उम्मीद है। नियमित अंतराल पर आने वाले आंकड़े भी यात्री वाहनों की बिक्री में बढ़ोतरी का संकेत दे रहे हैं। मई में खुदरा मुद्रास्फीति भी हाल के वर्षों में सबसे कम रही है। इससे शहरी क्षेत्र में मांग बढ़नी चाहिए। मगर यह भी सच है कि वैश्विक चुनौतियों के कारण खतरा भी बना रहेगा।
वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी वृद्धि दर कितनी रह सकती है?
भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जबकि आर्थिक समीक्षा में यह 6.3-6.8 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई गई है। वैश्विक चुनौतियों के बावजूद घरेलू मोर्चे पर अनुकूल माहौल से वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना मजबूत दिखाई दे रही है।
गरीबी मापने के विश्व बैंक के मानक में बदलाव के बावजूद भारत में अत्यंत गरीबी कम होकर 5.5 प्रतिशत रह गई है। इस मानक के आधार पर भारत को कब तक गरीबी से छुटकारा मिल जाएगा?
आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन और स्वयं मैंने एक अध्ययन किया था जिसमें दर्शाया गया था कि भारत में गरीबी 2011-12 में दर्ज 29.5 प्रतिशत से कम होकर 2023-24 में 4.9 प्रतिशत रह गई है। हमने यह भी संकेत दिया था कि अगर हम गरीबी रेखा बढ़ाते हैं तो भी गरीबी कम होने की दर कमोबेश बरकरार रहेगी। इस दर पर भारत जल्द अत्यंत गरीबी खत्म करने में सफल हो जाएगा। भारत गरीबी पर टिकाऊ विकास लक्ष्यों हासिल करने की राह पर कायम रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का कहना है कि प्रजनन दर घटाने के बजाय परिवारों को बच्चों की संख्या सीमित करने पर ध्यान देना चाहिए। आप क्या कहेंगे?
भारतीय राज्यों और वैश्विक स्तर पर हुए अध्ययनों से यह बात निकल कर आई है कि महिला सशक्तीकरण खासकर उनमें शिक्षा का स्तर बढ़ने से प्रजनन दर में कमी आई है। भारत में कई राज्यों में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर के करीब या इससे नीचे है। भारत जैसे संप्रभु देश को स्थानीय स्थिति और संदर्भों का ध्यान रखते हुए आबादी नियंत्रण के संबंध में उपयुक्त नीति चुनने का अधिकार होना चाहिए।