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स्वास्थ्य खर्च में वृद्घि, जेब खर्च में कटौती

Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

कोविड महामारी की वजह से हेल्थकेयर सुर्खियों में है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आगामी स्वास्थ्य संकट की तैयारी के लिए क्षेत्र पर खर्च बढ़ाने और साथ ही नियमन एवं निगरानी के लिए सेक्टोरल नियामक बनाए जाने की भी जरूरत है। यह स्वास्थ्य संकट कोविड-19 से काफी अलग हो सकता है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने और देश में इसे किफायती बनाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। मौजूदा महामारी से यह स्पष्ट हो गया है कि किस तरह से स्वास्थ्य संकट का प्रभाव आर्थिक और सामाजिक संकट को बढ़ावा दे सकता है। इसमें कहा गया है कि अगला स्वास्थ्य संकट संभवत: कोविड-19 से अलग हो सकता है और इसे देखते हुए हमारा ध्यान संचारी बीमारी पर जोर दिए जाने के बजाय एक मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण पर होना चाहिए।
समीक्षा के अनुसार, भारत अपने बजट में स्वास्थ्य के लिए प्राथमिकता देने वाले 189 देशों में से 179वें स्थान पर है, जो हैती और सूडान जैसे देशों के समान है। नैशनल हेल्थ अकाउंट्स 2017 के अनुसार, जहां हेल्थकेयर पर 66 प्रतिशत खर्च राज्यों द्वारा किया जाता है, वहीं हेल्थकेयर पर सरकारी खर्च सभी राज्यों में अलग अलग है और इसका उनके आय स्तर में पूरी तरह से जिक्र नहीं किया गया है।
भारत को महामारी से मुकाबले के लिए तैयार बनाने के लिए, स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाना होगा। उदाहरण के लिए, आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि हरेक अस्पताल को कम से कम एक वार्ड के साथ तैयार रखा जा सकेगा और किसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा की स्थिति में उसे तुरंत संशोधित किया जा सकेगा।
समीक्षा में स्वास्थ्य में कम मानव संसाधन और पर्याप्त चिकित्सक-नर्स-दाई अनुपात पर भी ध्यान दिया गया है। जहां केरल और जम्मू-कश्मीर में चिकित्सकों का अच्छा घनत्व है, वहीं पंजाब, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में नर्स और दाई हैं, लेकिन चिकित्सकों की संख्या कम है।
शहरी भारत में 74 प्रतिशत बाह्य रोगी देखभाल और अस्पताल में भर्ती होने से संबंधित 65 प्रतिशत देखभाल की सुविधा निजी क्षेत्र द्वारा मुहैया कराई जाती है।
समीक्षा में कहा गया है, ‘चूंकि भारत में हेल्थकेयर का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र द्वारा मुहैया कराया जाता है, इसलिए नीति निर्माताओं के लिए यह जरूरी है कि वे ऐसी नीतियां बनाएं जिनसे हेल्थकेयर में सूचना की विषमता दूर की जा सके, क्योंकि ऐसा नहीं होने पर बाजार की विफलता को बढ़ावा मिलता है।’
समीक्षा में ब्रिटेन में नैशनल हेल्थ सर्विस द्वारा पेश क्वालिटी ऐंड आउटकम्स फ्रेमवर्क जैसे प्लेटफॉर्म बनाए जाने का भी सुझाव दिया गया है। एआई और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के आंकड़े को भी डेटा निजता के ढांचे में इस्तेमाल किया जा सकेगा जिससे कि सूचना की विषमता को दूर किया जा सके।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘सूचना की विषमता दूर करने से बीमा प्रीमियम नीचे लाने, बेहतर उत्पाद मुहैया कराने और देश में बीमा की पैठ बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।’
इंटरनेट कनेक्टिविटी और हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के जरिये दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्य पहुंच की संभावना के साथ देश में टेलीमेडिसिन को मजबूत बनाए जाने पर भी जोर दिया गया है।
आर्थिक समीक्षा में यह भी अनुमान जताया गया है कि स्वास्थ्य खर्च बढ़ाकर जीडीपी के 1 प्रतिशत से 2.5-3 प्रतिशत किए जाने से आउट-ऑफ पॉकेट खर्च 65 प्रतिशत से घटकर कुल हेल्थकेयर खर्च के 30 प्रतिशत पर लाया जा सकता है। वित्तीय नजरिये से, भारत दुनिया में ओओपीई के सर्वाधिक स्तरों में से एक है और वह अचानक व्यय और गरीबी की भयावह स्थिति में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है।

First Published - January 29, 2021 | 11:43 PM IST

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