अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारत सहित कई देशों के लिए 90 दिनों के शुल्क स्थगन की घोषणा के बाद वैश्विक विनिर्माता इस अवधि के दौरान अमेरिका में माल पहुंचाने की जल्दबाजी में हैं। ओस्लो की समुद्री विश्लेषण फर्म जेनेटा के मुख्य विश्लेषक पीटर सैंड ने कहा, ‘90 दिनों के लिए शुल्क स्थगित करने का शिपर्स स्वागत करेंगे, लेकिन यह जश्न मनाने का कारण नहीं हो सकता। चीन और अमेरिका के बीच अभी व्यापार युद्ध चल रहा है, जिसमें शुल्क 100 प्रतिशत से ऊपर बढ़ रहे हैं।’
लगातार 4 महीने की गिरावट के बाद 8 वैश्विक समुद्री मार्गों पर माल ढुलाई की दरें लागातार दूसरे सप्ताह बढ़ी हैं। अमेरिका द्वारा जवाबी शुल्क लगाए जाने और उसके बाद उस पर अस्थायी रूप से रोक लगाए जाने की वजह से ऐसा हुआ है। ट्रांसपोर्टरों के लिए उतार चढ़ाव वाले माहौल के बीच पिछले सप्ताह ड्रेवरी वर्ल्ड कंटेनर इंडेक्स 3 प्रतिशत बढ़कर 2,265 डॉलर प्रति 40 फुट कंटेनर हो गया है।
सैंड ने कहा, ‘जिन शिपर्स के पास चीन से इतर देशों से आयात को जल्दी से जल्दी बाहर निकालने का अवसर है, वे ऐसा करेंगे क्योंकि स्थिति अत्यधिक अप्रत्याशित बनी हुई है। इस बात की पूरी संभावना है कि उच्च शुल्क अब से 90 दिनों के बाद लागू हो जाएंगे।’हालांकि शिपर क्षमता घटाने और व्यवधान को लेकर योजना बनाने में भी जुटे हुए हैं। वैश्विक व्यापार से जुड़े लोगों ने पहले ही इसकी संभावना जता दी थी। ड्रेवरी के रद्द किए गए सेलिंग ट्रैकर के मुताबिक प्रमुख पूर्व पश्चिम मार्गों पर 3 सप्ताह के दौरान खाली जहाज की आवाजाही 41 से बढ़कर 77 हो गई है, जो करीब दोगुना है, क्योंकि ढुलाई करने वाले अपनी क्षमता कम कर रहे हैं।
ड्रेवरी ने कहा है, ‘हाल में चीन और अन्य एशियाई देशों से आयात पर अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क के कारण मांग कम होने की उम्मीद है, जिसके कारण ढुलाई करने वालों के सामने चुनौती आई है। दरों के स्तर को बरकरार रखने के लिए ढुलाई करने वाले अपने क्षमता प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। प्राथमिक रूप से जहाजों की खाली आवाजाही से यह हो सकता है। अगले 5 सप्ताह में जहाज के फेरों की संख्या घट सकती है। हमारा अनुमान है कि 88 प्रतिशत प्रस्थान निर्धारित समय पर होगा।’ आगे चलकर शिपर इस बात पर नजर रखेंगे कि आपूर्ति श्रृंखला में किस तरह का बदलाव हो रहा है।
जापान मुख्यालय वाली एक बड़ी शिपिंग कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘यदि शुल्क और संभावित जवाबी उपायों से महंगाई और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी को बढ़ावा मिलता है, तो इससे अंततः समुद्री माल की मात्रा और व्यापार तरीके पर असर पड़ सकता है। हम स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं।’
इस होड़ के बीच भारतीय बंदरगाह कंपनियां भी महंगे माल को अपने टर्मिनलों पर लाने के अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं। बंदरगाह के एक और अधिकारी ने कहा, ‘व्यवधान के कारण निर्यातकों में पहले ही घबराहट फैल गई है। वे हर जगह बैकप योजना की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी प्राथमिक ट्रांसपोर्टरों व कार्गो संचालकों की जरूरतें पूरी हो सकें। हम इस तरह की बड़ी संभावना देख रहे हैं। हम नजर रख रहे हैं कि क्या समर्पित सुविधाओं के लिए कम शुल्क वाले देशों में कारोबारियों के साथ सहयोग करना एक अच्छा हो सकता है। हालांकि पिछले सप्ताह हम इसे लेकर आश्वस्त थे। लेकिन अब शुल्क पर रोक के कारण देखो और इंतजार करो की स्थिति है।’
भारत में भंडार जमा होने से लॉजिस्टिक्स पर दबाव पड़ रहा है। लॉजिस्टिक्स फर्म हेक्सालॉग के संस्थापक दिव्यांशु त्रिपाठी ने कहा, ‘इसके पहले भी अमेरिका और चीन के बीच व्यापार मार्गों पर माल ढुलाई की दरें 80 से 120 प्रतिशत बढ़ी थीं। यह जवाबी कर लगाए जाने के कारण हुआ था व्यापारिक व्यवस्था में व्यवधान पड़ा था। अब भारत अमेरिका गलियारे में इसी तरह की चुनौती आ रही है। अल्पकालिक भंडारण से लॉजिस्टिक्स गतिविधियों में 20 से 35 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।