इसे विडंबना ही कहेंगे कि प्राथमिक शिक्षा के मद में लगाए जाने वाला अधिभार जितनी तेजी से बढ़ रहा है उसी तेजी से इस पर खर्च होने वाली बजट राशि घटती जा रही है।
इस साल के बजट में प्राथमिक शिक्षा के लिए जो धनराशि आवंटित की गई है वह तो साल 2004-05 में इस मद में आवंटित राशि से भी कम है।
हालांकि तब शिक्षा पर कोई अधिभार नहीं लगाया गया था। ताजा रिसर्च से पता चलता है कि 2004-05 में 2 फीसदी अधिभार लगाए जाने के बाद किस तरह इस फंड में गिरावट आयी है।
वित्तीय वर्ष 2007-08 में प्राथमिक शिक्षा के मद में संशोधित आवंटन 18,439 करोड़ रुपए था।
इनमें से 12,998 करोड़ रुपए तो शिक्षा अधिभार से ही आ गए। ऐसे में शिक्षा के मद में सरकार का वास्तविक योगदान महज 5,441 करोड़ रुपए का रहा।
जबकि मिड डे मिल और सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं पर इसी मद से 11,128 करोड रुपए खर्च किए गए।
अगर बात इस साल के बजट की करें तो प्राथमिक शिक्षा के लिए 19,777 करोड क़ी राशि आवंटित की गई है और इसमें शिक्षा अधिभार का योगदान ही 14,844 करोड़ रुपए का हो जाता है।
सरकार ने साल 2003-04 में प्राथमिक शिक्षा पर संशोधित आवंटन 5,219 करोड़ रुपए का रखा था।
2004-05 में जब इस मद पर अधिभार लगाया गया था, तब सरकार मात्र 2317 करोड ही खर्च कर पायी। इसके अगले साल भी अधिभार के अलावे प्राथमिक शिक्षा पर सरकार का खर्च केवल 4,244 करोड़ रुपए ही रहा।
इस साल के बजट में अधिभार केअलावे प्राथमिक शिक्षा में सरकार की हिस्सेदारी पांच साल पहले आवंटित राशि से भी कम रही है। पांच साल पहले यह जहां 5,219 करोड़ था वहीं इस साल यह 4,933 करोड़ रुपए ही रहा है।
जाहिर है शिक्षा अधिभार के अलावे प्राथमिक शिक्षा पर सरकार की हिस्सेदारी कम ही हो रही है।
इस मुद्दे पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में वित्तीय सलाहकार एस.के.राय कहते हैं-शिक्षा अधिभार का इस्तेमाल दूसरे मदों में कर शिक्षा पर होने वाला खर्च ही घटाते जाना कितना सही है?