डेवलपमेंट एंटरप्राइज ऐंड सर्विसेज हब (DESH) विधेयक में कंपनियों को निवेश,अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, रोजगार सृजन और निर्यात में से किसी भी एक का वादा करने की जरूरत हो सकती है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने कहा कि इससे अंततः अर्थव्यवस्था और वृद्धि को रफ्तार मिलेगी। इस विधेयक का उद्देश्य मौजूदा विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) कानून को बदलना है। विधेयक पर काम चल रहा है और वाणिज्य विभाग इसे अंतिम रूप देने की तैयारी में है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार कंपनियों को उनकी पसंद के अनुसार इनमें से किसी भी एक कसौटी पर खरा उतरने की छूट देगी। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि इन कंपनियों के लिए निर्यात ही इकलौती जिम्मेदारी न हो। इस प्रकार प्रस्तावित कानून विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के भी अनुकूल बन जाएगा।
देश विधेयक में केवल व्यापक श्रेणियों का उल्लेख होगा लेकिन हरेक श्रेणी के लिए प्रतिबद्धता एवं अन्य महत्त्वपूर्ण विवरण वाणिज्य विभाग द्वारा तैयार किए जाएंगे। संसद में इस विधेयक के पारित होने के बाद इसे नियमों के एक भाग के रूप में लागू किया जाएगा। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘अपनी इकाइयां स्थापित करने जा रही कंपनियों को निश्चित मात्रा में निवेश, निश्चित संख्या में रोजगार सृजन, निश्चित मूल्य में निर्यात या अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का वादा या संकल्प करना होगा। सरकार उन्हें इनमें से कोई एक चुनने की छूट जरूर देगी। इससे सुनिश्चित होगा कि उन्हें इस कानून के तहत कर लाभ मिले और अंतत: अर्थव्यवस्था को भी फायदा हो।’
उद्योगों के साथ हो रहा हैं विचार-विमर्श
इससे वित्त मंत्रालय की वह चिंता भी दूर होगी कि इकाइयां किसी निर्यात दायित्व या एनएफई मानदंड के अभाव में सीमा शुल्क भुगतान टालने के लिए खुद को एसईजेड घोषित न कर दें। अधिकारी ने कहा कि यह विधेयक तैयार करने से पहले वित्त मंत्रालय के साथ भी चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में उद्योग के साथ विचार-विमर्श भी किया जा रहा है।’
मौजूदा कानून के तहत एसईजेड में मौजूद इकाइयों के लिए शुद्ध विदेशी मुद्रा आय (NFE) हासिल करना यानी आयात के मुकालबे निर्यात का मूल्य अधिक रखना अनिवार्य है। इन इकाइयों का एनएफई सकारात्मक होने के कारण सरकार से सब्सिडी और कर में छूट मिलती है। करीब तीन साल पहले इसके कारण विश्व व्यापार संगठन में विवाद पैदा हो गया था।
वाणिज्य विभाग ने विधेयक का पहला मसौदा जून में ही तैयार कर लिया था लेकिन राजस्व विभाग ने प्रस्तावित राजकोषीय प्रोत्साहन पर एतराज जताया। उसने यह भी कहा कि विकास केंद्रों को देसी बाजार के साथ जोड़ने के मामले में विधेयक जरूरत से ज्यादा दरियादिली दिखा रहा है। इसके कारण घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) इकाइयां भी ये लाभ हासिल करने की मंशा जता सकती हैं और देश विधेयक के तहत कर रियायत से होने वाले कार्यशील पूंजी लाभ के कारण इन केंद्रों में स्थानांतरित हो सकती हैं। राजस्व विभाग ने आशंका जताई है कि ऐसे में वस्तुओं को निर्यात करने के बजाय देसी बाजार में बेचा जा सकता है।