चालू वित्त वर्ष 2021-22 के शुरुआती 5 महीनों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग तेज बनी हुई है। हालांकि यह आंकड़े वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में कम हैं, जो एक असाधारण वर्ष था और देशव्यापी बंदी व अस्थायी श्रमिकों के विस्थापन के कारण बड़े पैमाने पर मजदूर शहरों से गांवों में पहुंचे थे। विशेषज्ञों के मुताबिक महामारी के पहले के वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में काम की मांग अभी तेज है।
इन गतिविधियों व अन्य दावों से संकेत मिलते हैं कि 2020 की तुलना में ग्रामीण इलाकों में स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन अभी स्थिति सामान्य स्तर पर नहीं है। बड़ी संख्या में हाथ से काम करने वाले अस्थायी श्रमिक अभी भी मनरेगा जैसी योजनाओं में काम की तलाश में हैं।
मनरेगा में अब और वित्तपोषण की जरूरत महसूस की जा रही है। वित्त वर्ष 22 के लिए 73,000 करोड़ रुपये मनरेगा के मद में आवंटित हुए थे, जिसमें से करीब 55,915.31 करोड़ रुपये (बजट का करीब 77 प्रतिशत) वित्त वर्ष के शुरुआती 5 महीनों में ही खर्च हो चुका है। इस व्यय में पिछले वित्त वर्ष का लंबित बकाया भी शामिल है, जिसे पिछले साल कराए गए काम के एïवज में दिया गया है।
कुछ रिपोर्टों में पहले ही कहा जा चुका है कि चालू वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त जरूरत पड़ सती है, जिससे काम की मांग की जरूरतों को पूरा किया जा सके। मनरेगा की वेबसाइट से लिए गए आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में करीब 3.19 करोड़ परिवारों ने इस योजना के तहत काम की मांग की, जो पिछले साल की तुलना में 0.25 प्रतिशत कम है, लेकिन 2019 के समान महीने की तुलना में करीब 74 प्रतिशत ज्यादा है।
इसी तरह से अगस्त, 2021 में 30 तारीख तक करीब 2.436 करोड़ परिवारों ने मनरेगा में काम की मांग की, जो पिछले साल से महज 0.21 प्रतिशत ज्यादा है, लेकिन 2019 के समान महीने की तुलना में करीब 68 प्रतिशत ज्यादा है। मनरेगा संघर्ष मोर्चा के देवमाल्य नंदी ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह बहुत स्वाभाविक है कि मनरेगा के तहत काम की मांग अभी बहुत ज्यादा है। यह 2019-20 की तुलना में उल्लेखनीय रूप से ज्यादा है।
बहलहाल बजट आवंटन 2019-20 के बराबर ही हुआ है। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि केंद्र सरकार को अपने आंकड़े दुरुस्त करने व ज्यादा धन आवंटन करने की जरूरत है, जिससे यह योजना सामान्य रूप से चल सके। साथ ही यह भी अहम है कि इस साल मजदूरी देने में बहुत देरी हो रही है, जिसकी वजह से जमीनी स्तर पर काम की मांग सुस्ती हो सकती है। इस तरीके से देखें तो असल मांग इस साल उससे कहीं ज्यादा हो सकती है, जितनी मनरेगा की वेबसाइट पर दिखाया गया है और अभी इस योजना के तहत रोजगार सृजन की बहुत ज्यादा संभावना है।’ उन्होंने कहा कि वह जिन जिन राज्यों में गए हैं, ग्राम पंचायतों ने कम काम जारी किए हैं और कामगारों को पर्याप्त काम नहीं मिला है।
उन्होंने कहा, ‘आधिकारिक आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले 4 साल में लीकेज बहुत ज्यादा (कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक) है। ऐसे में सरकार को न सिर्फ ज्यादा बजट आवंटित करने की जरूरत है, बल्कि समय से भुगतान सुनिश्चित करने की भी जरूरत है।’