अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अनुमान जताया है कि सरकार का ऋण, जिसमें केंद्र और राज्यों की सरकारें भी शामिल हैं, वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के रिकॉर्ड 90.6 प्रतिशत स्तर तक पहुंच जाएगा, जबकि पिछले वर्ष यह 89.6 प्रतिशत के स्तर पर था।
आईएमएफ ने अपने नवीनतम वित्तीय मॉनिटर में कहा है कि भले ही यह ऋण 2022-23 के दौरान नरम पड़कर 88.8 प्रतिशत तक हो जाएगा, लेकिन यह अगले पांच वर्षों में वर्ष 2026-27 तक 85 प्रतिशत से अधिक बना रहेगा।
देश में कोविड-19 के आने से पहले सरकार का ऋण 80 प्रतिशत से कम रहा है। उदाहरण के लिए वर्ष 2019-20 के दौरान यह 74.1 प्रतिशत, इससे पिछले वर्ष में 70.4 प्रतिशत, वर्ष 2017-18 में 69.7 प्रतिशत और वर्ष 2016-17 में 68.9 प्रतिशत था।
जहां एक ओर मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने हाल ही में भारत की सॉवरिन रेटिंग पर दृष्टिकोण को नकारात्मक से स्थिर करते हुए इसमें सुधार किया है, वहीं दूसरी ओर इसने सरकार के सामान्य ऋण के अधिक होने और अन्य मापदंडों के साथ-साथ कम ऋण वहन क्षमता को अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख साख चुनौतियों के रूप में गिना है।
वर्ष 2020-21 में केंद्र का ऋण जीडीपी के 58.8 प्रतिशत स्तर पर रहा। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह कुछ लुढ़ककर 57.6 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। अच्छी बात यह है कि केंद्र ने राज्यों को कुल उधारी के लिए अपनी कार्यसूची में जीएसटी मुआवजे को शामिल किया, जिसे चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में 5.03 लाख करोड़ रुपये पर अपरिवर्तित रखा गया था।
फरवरी के बजट में 12.05 लाख करोड़ रुपये की सकल बाजार उधार की अपनी घोषणा के बाद सरकार ने कहा था कि जीएसटी मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए उसे बाजार से 1.58 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त उधार लेने पड़ सकते हैं।
अलबत्ता बाजार से उधारी केंद्र के कुल ऋण का एक छोटा-सा ही हिस्सा है। उदाहरण के लिए चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान कुल ऋण में इसका योगदान 6.1 प्रतिशत था।
आईएमएफ ने देश का राजकोषीय घाटा, केंद्र और राज्यों दोनों का, चालू वित्त वर्ष के दौरान दोहरे अंकों में रहने का अनुमान भी जताया है। भले ही यह कुछ कम होकर जीडीपी के 11.3 प्रतिशत स्तर पर रहे, जो पिछले वर्ष यह 12.8 प्रतिशत था।