वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में सुधार पर विचार कर रही राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति डीलरों के लेन-देन पर नजर रखने के लिए एक प्रणाली पेश कर सकती है। इसे ई-वे बिल सिस्टम से भी जोड़ा जा सकता है, जिससे फर्जी डीलरों का पता लगाया जा सके।
इस कदम से फर्जी रसीद से निपटने में मदद मिल सकती है और इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के प्रवाह को विनियमित किया जा सकता है।
यह समिति वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआईएल) के साथ जोडऩे का भी सुझाव दे सकती है, जिससे कर रिफंड में धोखाधड़ी को रोका जा सके।
यह मंत्रिसमूह (जीओएम) की सिफारिशों का हिस्सा है, जिसके बाद राज्यों से राय ली गई थी। अंतिम रिपोर्ट अप्रैल में होने वाली जीएसटी परिषद की अगली बैठक में पेश किए जाने की संभावना है।
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में मंत्रिसमूह को कर चोरी के संभावित स्रोतों को चिह्नित करने और राजस्व में लीकेज को रोकने के लिए बिजनेस प्रॉसेस और आईटी सिस्टम में बदलाव का सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
समिति ने कारोबार में कदाचार जैसे कि फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के उपयोग, वास्तविक आपूर्ति के बिना क्रेडिट पास करने, पास व उपयोग किए गए आईटीसी में वृद्धि आदि को लेकर फीडबैक व्यवस्था बनाने की सिफारिश की है।
समिति के एक सदस्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘डीलरों के ट्रांजैक्शन पर जीएसटीएन को एक व्यवस्था विकसित करनी चाहिए, जहां डीलरों की खरीद की निगरानी हो सके। अब तक सभी जवाबदेही और ट्रैकिंग का काम बिक्री के स्तर पर होता है, लेकिन यह जरूरी है कि विनिर्माण के स्तर पर भी नजर रखी जाए।’
इसे और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि अगर नया डीलर अपनी खरीद का 80 प्रतिशत राज्य के बाहर बेचता है तो न्यायक्षेत्र के अधिकारी के समक्ष जांच व कार्रवाई के लिए मामला उठाना होगा। इस व्यवस्था में उन अधिकारियों को भी सूचित करना चाहिए जहां आपूर्तिकर्ता प्राप्तकर्ता पंजीकृत है। इसे ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए इस व्यवस्था को ईवे बिल व्यवस्था खासकर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) लेन-देन से जोड़ा जाना चाहिए। इससे उस स्तर पर भी निगरानी हो सकेगी, अगर ई-वे बनाया गया, लेकिन वह खेप टोल प्लाजा के माध्मय से नहीं गुजरी है। कर विशेषज्ञों का मानना है कि डीलरों के लेन-देन को ट्रैक करने के लिए ई-रसीद को हर लेन-देन के लिए अनिवार्य किया जा सकता है, जिस पर क्रेडिट लिया जा सकता है। साथ ही ई-वे बिल डेटा को ढुलाई वाले वाहनों की आवाजाही के आंकड़ों से जोड़े जाने की जरूरत है, जो विभिन्न टोल प्लाजा से गुजरते हैं। ईवाई में पार्टनर विपिन सप्रा ने कहा कि फर्जी रसीदों की निगरानी के लिए यह कारगर उपाय हो सकता है।
