सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया के समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) बकाया का पुनर्मूल्यांकन करने की आज अनुमति दे दी। अदालत ने कहा कि संकटग्रस्त दूरसंचार सेवा प्रदाता को राहत प्रदान करना केंद्र सरकार के नीतिगत दायरे में आता है।
देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और विपुल एम पंचोली के पीठ ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि यह कदम उपभोक्ता हित और देश की तीसरी सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी में सरकार की उल्लेखनीय हिस्सेदारी से प्रेरित था।
केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र के पास वोडाफोन आइडिया में 49 फीसदी हिस्सेदारी है और बकाया एजीआर की समीक्षा कंपनी के बड़े ग्राहक आधार को प्रभावित करने वाली चिंता को देखते हुए की गई है। कंपनी के 20 करोड़ से अधिक ग्राहक हैं। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा आज जारी आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2025 तक वोडाफोन आइडिया के 20.28 करोड़ ग्राहक थे।
अदालत ने कहा, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि यह केंद्र के नीतिगत दायरे में आता है और सरकार को आगे बढ़ने से रोकने का कोई कारण नहीं है।’ अदालत ने कहा कि उसे केंद्र द्वारा इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने और उचित निर्णय लेने में कोई समस्या नहीं दिखती है।
वोडाफोन आइडिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी सरकार के दृष्टिकोण पर संतोष व्यक्त किया। अदालत ने कहा, ‘मामले की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कंपनी में पर्याप्त इक्विटी डाली है और इस मुद्दे का सीधा असर 20 करोड़ ग्राहकों के हितों पर पड़ने की संभावना है। हमें केंद्र द्वारा इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने और उचित निर्णय लेने में कोई समस्या नहीं दिखती है।’
वोडाफोन आइडिया ने कहा कि यह फैसला कंपनी के लिए सकारात्मक है क्योंकि इसने सरकार को दूरसंचार कंपनी द्वारा उठाए गए एजीआर से संबंधित मुद्दों पर गौर करने की अनुमति दी है। कंपनी इस मुद्दे का समाधान करने के लिए सरकार के साथ काम करेगी।
बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर वोडाफोन आइडिया का शेयर 9.3 फीसदी चढ़कर 52 सप्ताह के उच्च स्तर 10.52 रुपये पर पहुंच गया, जो इस साल 7 अक्टूबर के बाद से एक दिन के कारोबार में आई सबसे बड़ी तेजी है।
कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला कंपनी और भारत के दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इससे सरकार को नियामक की विश्वसनीयता बनाए रखते हुए और दबाव वाले क्षेत्र की समस्या दूर करने में सहूलियत होगी।
किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में पार्टनर स्मिता पालीवाल ने कहा, ‘वोडाफोन आइडिया के लिए यह राहत पर बातचीत करने के लिए महत्त्वपूर्ण राह खोलता है। इसके तहत कंपनी बकाया राशि को नए सिरे से तय करने या विस्तारित भुगतान समयसीमा के माध्यम से राहत पर बात कर सकती है मगर इसका मतलब स्वचालित छूट नहीं है। न्यायालय का इस बात पर जोर है कि पिछली देनदारियों को अनिश्चित काल तक फिर से नहीं खोला जा सकता है।’
किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में पार्टनर स्मिता पालीवाल ने कहा, ‘अन्य दूरसंचार कंपनियां दूरसंचार विभाग से बातचीत कर सकती हैं लेकिन राहत व्यक्तिगत परिस्थितियों और सरकार के व्यापक नीतिगत रुख पर निर्भर करेगा।’
उन्होंने कहा कि सभी के लिए एकसमान राहत उपाय की संभावना नहीं है। प्रतिस्पर्धी दूरसंचार सेवा प्रदाता भारती एयरटेल ने भी पहले 40,000 करोड़ रुपये से अधिक के एजीआर बकाया को इक्विटी में बदलने का प्रस्ताव देकर मामले में सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी। वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल उन प्रमुख कंपनियों में शामिल हैं जिन पर सरकार का एजीआर बकाया है।
विधि फर्म ट्राईलीगल में पार्टनर आशीष भान ने कहा, ‘न्यायालय निर्णय से इस मुद्दे को बिना किसी विवाद और लंबी मुकदमेबाजी के सुलझाने का रास्ता खुल गया है। मेरा मानना है कि इससे नियामकीय अड़चनें कम होंगी, हितधारकों में स्पष्टता आएगी और उद्योग की स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।’
शीर्ष अदालत का फैसला वोडाफोन आइडिया द्वारा इस साल सितंबर में दायर एक याचिका पर आया है, जिसमें उसने 2016-17 तक की अवधि के लिए सभी एजीआर बकाया का व्यापक पुनर्मूल्यांकन और देनदारियों की पुनर्गणना की मांग की थी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के 2020 के फैसले द्वारा पहले से निपटान हो चुकी अवधि के लिए भी दूरसंचार विभाग द्वारा अतिरिक्त मांग की गई थी।