राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका में पर्चे पर लिखी जाने दवाओं के मूल्य अन्य देशों के बराबर किए जाने के आदेश पर हस्ताक्षर करने से भारत पर दो तरफा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। पहला, बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत सहित अन्य बाजारों में दवाओं का मूल्य बढ़ाएंगी और इससे भारत के मरीजों पर प्रभाव पड़ेगा। दूसरा, भारत के औषधि निर्यातकों को मध्यम अवधि में अमेरिका में मूल्य का दबाव सहना पड़ेगा।
ट्रंप ने 11 मई को हस्ताक्षर करने की योजना की घोषणा की थी। ट्रंप ने इसे ‘अमेरिका के इतिहास में सबसे प्रभावी कार्यकारी आदेश’ करार दिया था। इस फैसले का उद्देश्य अमेरिका में पर्चे पर लिखी जाने वाली दवाओं का मूल्य कम करना और अमेरिका में दवाओं का मूल्य तत्काल प्रभाव से 30 से 80 प्रतिशत कम करना है। ट्रंप ने अन्य देशों की तुलना में अमेरिका के उपभोक्ताओं के दवाओं के लिए अधिक मूल्य अदा करने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ‘एक ही कंपनी के एक प्रयोगशाला या संयंत्र’ में बनाई गई दवा अमेरिका में ‘पांच से 10 गुना’ अधिक महंगी है।
दिन के कारोबार में भारत-पाकिस्तान में संघर्ष विराम होने पर बाजार जब खुशी मना रहा था तब निफ्टी फार्मा का कारोबार दिन में गिरा। हालांकि यह दिन की समाप्ति पर सुधरा और मामूली सुधार के साथ बंद हुआ। हालांकि शेयर बाजार में सन फार्मा, ग्लेन मार्क, अजंता फार्मा आदि गिर गए।
सोमवार के कार्यकारी आदेश में अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि व वाणिज्य मंत्री को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अमेरिका में अन्य देश जानबूझकर दाम बढ़ाने वाले तरीकों में शामिल नहीं हो और वे अनुचित तरीके से दाम नहीं बढ़ाएं। यह आदेश प्रशासन को निर्देश देता है कि वह औषधि निर्माताओं को मूल्य लक्ष्य के बारे में जानकारी दे। अमेरिका विश्व में पर्चे पर लिखी जाने वाली दवाओं का सबसे बड़ा खरीदार और धन मुहैया कराने वाला है। स्वास्थ्य व मानवीय सेवा के सचिव ऐसा तंत्र विकसित करेंगे कि अमेरिका के मरीज बिचौलियों को दरकिनार कर अपने देश में दवा बेचने वाले विनिर्माताओं से सीधे दवा खरीद सकें। इस सिलसिले में ट्रंप ने पहले कहा था कि इस कदम से अन्य देशों में औषधियों के दाम बढ़ेंगे और दाम का वैश्विक अंतर पटेगा। हालिया आंकड़ों के अनुसार अमेरिका के निवासी ब्रांडेड नामों वाली दवाओं के लिए ओईसीडी देशों की तुलना में तीन गुना अधिक मूल्य का भुगतान करते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश में कहा गया कि अमेरिका में विश्व की पांच प्रतिशत से कम आबादी है लेकिन वह वैश्विक औषधि के लाभ में करीब 75 प्रतिशत का योगदान देता है।
विश्लेषकों के अनुसार सन फार्मास्युटिक्ल इंडस्ट्रीज सर्वाधिक प्रभावित होने वाली कंपनियों में हो सकती है। इस कंपनी का अमेरिका के बाजार में पर्याप्त बड़ा ब्रांडेड कारोबार है।
नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषक श्रीकांत अकोलकर ने बताया, ‘कंपनियां जैसे सन फार्मा का अमेरिका में ब्रांडेड कारोबार 1 अरब डॉलर से अधिक है और वे इस नीति को लागू होने और सख्ती से लागू होने का असर का सामना कर सकती हैं। हालांकि जेनरिक बाजार पर भी मध्यम अवधि में दबाव देखने को मिल सकता है। इसका कारण यह है कि जेनरिक दवाएं भी डॉक्टर के पर्चे पर लिखी जाती हैं।’
सैन फ्रांसिस्को में अमेरिका की शोध व परामर्श कंपनी ग्रांड व्यू रिसर्च के अनुसार 2024 में अमेरिका का बाजार 634.32 अरब डॉलर होने का अनुमान है और इसका 2025 से 2030 तक सीएजीआर वृद्धि 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वर्ष 2024 में अमेरिका के फार्मा मार्केट में ब्रांडेड खंड के राजस्व की हिस्सेदारी 66.86 प्रतिशत थी और इसका इस बाजार में दबदबा था।
भारत की कई कंपनियां अपने कुल राजस्व का एक तिहाई अमेरिका से प्राप्त करती हैं। इस क्रम में ज्यादातर भारतीय कंपनियां अमेरिका को जेनरिक दवाओं की आपूर्ति करती हैं और वे ब्रांडेड उत्पादों को उपलब्ध नहीं कराती हैं। भारत से अमेरिका को आपूर्ति की जाने वाली दवाओं में करीब 50 प्रतिशत जेनरिक दवाएं होती हैं। अमेरिका को आपूर्ति होने वाली जेनरिक दवाओं में भारत की हिस्सेदारी सर्वाधिक 36 प्रतिशत है। भारत की कंपनियों ने अमेरिका के 10 अरब डॉलर के मूल्य की दवाओं का निर्यात किया है।
नई नीति ‘सबसे पसंदीदा राष्ट्र’ मूल्य निर्धारण मॉडल को लागू करेगी। नई नीति में यह सुनिश्चित होगा कि अमेरिका दुनिया में कहीं भी दवा के लिए वसूले जा रहे न्यूनतम मूल्य से अधिक मूल्य का भुगतान नहीं करेगा।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के मुताबिक ट्रंप के इस कदम से अमेरिका के मरीजों को तत्काल लाभ मिल सकता है लेकिन इससे वैश्विक स्तर पर दवाओं के मूल्यों का पुन: आकलन हो सकता है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि अभी तक भारत विदेशी कंपनियों के मरीजों के कानून में संशोधन के दबाव के खिलाफ प्रमुख रूप से खड़ा था।
उन्होंने बताया, ‘भारत-ब्रिटेन मु्क्त व्यापार समझौते के साथ इस बदलाव से भारत पहली बार ट्रिप्स समिति की सिफारिशों के परे प्रावधानों पर सहमत हो गया है।’ उन्होंने कहा, ‘यह रियायत वैश्विक दवा कंपनियों के लिए एक जीत है और यूरोपीय संघ व अमेरिका के साथ चल रही वार्ता में आगे की मांगों के लिए द्वार खोलती है।’