महंगाई दर बढ़ने का असर ट्रक मालिकों पर दिखने लगा है और उसके साथ ही ट्रक खरीदने के लिए उन्हें कर्ज देने वाले बैंकों के भी पसीने छूटने लगे हैं।
दरअसल खर्च बढ़ने के साथ ही ऐसे ट्रक मालिकों की तादाद भी बढ़ती जा रही है, जिन्होंने बैंकों से वाहन ऋण लिया था, लेकिन अब उसे चुकाने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे डिफॉल्टरों की तादाद में इजाफा होने की बड़ी वजह पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगी आग भी है।
पिछले महीने डीजल की कीमत में 3 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी से ट्रक मालिकों का लागत खर्च ही नहीं बढ़ा है, बल्कि उनकी मांग में भी तेजी से गिरावट आई है। इस व्यवसाय से जुड़े जानकारों के मुताबिक डिफॉल्ट रेट यानी कर्ज नहीं चुकाने वालों की संख्या भी 6 महीनों में दोगुनी से ज्यादा हो गई है। पहले यह दर बमुश्किल 1-2 फीसद थी, लेकिन अब यही आंकड़ा बढ़कर 5-6 फीसद हो गया है।
बैंकों और उधार देने वाली अन्य संस्थाओं ने भी स्वीकार किया है कि कर्ज लेकर भागने वालों या कर्ज समय पर नहीं चुकाने वालों की संख्या बढ़ गई है। दिलचस्प है कि यह इजाफा तेल की कीमतें बढ़ाए जाने के बाद महीने भर के दौरान हुआ है। ट्रक के कुल संचालन खर्च में तेल खर्च की भागीदारी तकरीबन 60 फीसदी है जबकि रखरखाव, कलपुर्जे, श्रम, चुंगी आदि का खर्च अलग है।
एक दिग्गज बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘हमने हाल ही में डिफॉल्ट दर में इजाफा महसूस किया है और इस स्थिति में जल्द सुधार नहीं आ सकता। यह दर उन ट्रक मालिकों में अधिक पाई गई है जो फर्स्ट टाइम यूजर (एफटीयू) श्रेणी में आते हैं । उन पर बोझ बढ़ रहा है।’
एफटीयू ऐसे ऑपरेटर हैं जिनके पास कम ट्रक या सिर्फ दो-तीन ट्रक हैं। सामान्यतया 15-20 ट्रकों वाले ऑपरेटरों को बड़े ऑपरेटर के रूप में जाना जाता है। बैंक अधिकारियों का कहना है कि मुद्रास्फीति के असर से प्रभावित होने वालों में एफटीयू शामिल हैं। वे इस बढ़ोतरी का मुकाबला करने में विफल रहे हैं। इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग (आईएफटीआरटी) के समन्वयक एस. पी. सिंह ने कहा, ‘ट्रक बेड़े के आकार में बढ़ोतरी होने से बाजार में अधिक आपूर्ति की समस्या पैदा हो गई है। अधिकांश ट्रकों की मांग में कमी आई है।’
सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफेक्चरर्स (सियाम) के आंकड़ों के मुताबिक हालांकि पिछले साल की दूसरी छमाही में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में बढ़ोतरी जबर्दस्त नहीं रही। इन वाहनों की बिक्री में पिछले साल की पहली छमाही में 2.25 फीसदी की गिरावट के विपरीत 4 फीसदी का इजाफा हुआ। एक विश्लेषक के मुताबिक, ‘बैंकों और एनबीएफसी के लिए भुगतान में विलंब की दर बढ़ रही है।