पेंट क्षेत्र का प्रदर्शन कमजोर रहा है और एक्सचेंज में सूचीबद्ध ज्यादातर बड़ी कंपनियों के शेयरों में अगस्त व सितंबर (2022-23) के अपने-अपने उच्चस्तर से 24 से 30 फीसदी तक की गिरावट आई है। एक्जोनोबेल को छोड़ दें तो पेंट कंपनियां इस अवधि में रिटर्न के मामले में बेंचमार्क और समकक्ष सूचकांकों से पीछे रही हैं।
ब्रोकरेज फर्मों का मानना है कि अल्पावधि से लेकर मध्यम अवधि के नजरिये से इस क्षेत्र के लिए कई परेशानियां हैं, जो इनकी और डाउनग्रेडिंग की राह खोल देगा। इनमें अक्टूबर-दिसंबर तिमाही की कमजोर आय, सुस्त वॉल्यूम, नई कंपनियों के आने से इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का दबाव और मूल्यांकन को लेकर सहजता का अभाव शामिल है।
मुख्य कंपनियों के लिए अल्पावधि का जोखिम उनकी बिक्री पर पड़ने वाली चोट है क्योंकि मांग कम रहेगी। बाजार की अग्रणी एशियन पेंट्स का तीसरी तिमाही का प्रदर्शन इस रुख का संकेतक है। इसके तीन साल के देसी डेकोरेटिव पेंट के वॉल्यूम की रफ्तार घटकर 16-17 फीसदी रह गई है (जो जुलाई-सितंबर तिमाही में 19 फीसदी थी), जिसकी वजह तीसरी तिमाही में देर तक टिके मॉनसून, उच्च आधार और दीवाली सीजन की छोटी अवधि के कारण वॉल्यूम के मोर्चे पर स्थिर प्रदर्शन है। शहरी व ग्रामीण दोनों बाजारों में बढ़त की रफ्तार सुस्त रही है। कुछ निश्चित प्रीमियम
उत्पादों की ट्रेडिंग कम हुई है, जिसकी वजह कीमतों में पहले की गई तीव्र बढ़ोतरी है। नॉन-ऑटोमोटिव क्षेत्र भी सुस्त रहने की आशंका है।
इलारा सिक्योरिटीज के अमित पुरोहित की अगुआई में विश्लेषकों का मानना है कि इंडस्ट्रियल पेंट्स के बाजार की चमक कम रहने की संभावना है क्योंकि वाहनों का उत्पादन घटा है (मारुति सुजूकी के यात्री वाहन उत्पादन में 2 फीसदी की कमी आई)। उत्पादन घटने की वजह इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जे की किल्लत है।
यहां तक कि टाइटेनियम डाईऑक्साइड जैसे कच्चे माल की कीमत सालाना आधार पर 10 फीसदी घटी है और कच्चे तेल की कीमतें हालांकि 2022-23 के उच्चस्तर से नीचे आई हैं, लेकिन यह अभी भी सालाना आधार पर ज्यादा है।
एशियन पेंट्स के प्रबंधन ने संकेत दिया कि कच्चे माल की कीमतों में नरमी से सकल मार्जिन के विस्तार में मदद मिली, जो जनवरी-मार्च की मौजूदा तिमाही में और सुधरने की उम्मीद है। तीसरी तिमाही में धीमी शुरुआत के बाद दिसंबर में वॉल्यूम की रफ्तार दो अंकों में रही।
मोतीलाल ओसवाल रिसर्च का हालांकि मानना है कि अल्पावधि में वॉल्यूम पर दबाव रहेगा और परिचालन मुनाफा मार्जिन अगले दो से तीन साल तक नियंत्रण में रहने की संभावना है, जिसकी वजह संभावित प्रतिस्पर्धी दबाव और उत्पादन क्षमता में हो रहा विस्तार है।
मध्यम अवधि में मौजूदा फर्मों की सबसे बड़ी बाधा बड़ी निवेश क्षमता वाली कंपनियों का इस क्षेत्र में उतरना और अपनी बाजार हिस्सेदारी में आक्रामकता से इजाफा करना है।
एक ओर जहां ग्रासिम इंडस्ट्रीज इस क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बनना चाहती है, वहीं जेएसडब्ल्यू समूह की नजर वित्त वर्ष 26 तक 10 फीसदी बाजार हिस्सेदारी पाने पर है।
जेफरीज रिसर्च ने कहा है कि नई कंपनियों की तरफ से विपणन पर खर्च बढ़ रहा है और निप्पॉन पेंट व जेएसडब्ल्यू पेंट्स अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए अपनी बिक्री का 15-20 फीसदी इस पर खर्च कर रही हैं जबकि पुरानी कंपनियों का इस पर खर्च 5 फीसदी से भी कम है।
इस पर हालांकि बहुत ज्यादा स्पष्टता नहीं है कि ये कंपनियां कितनी गहराई तक जगह बना पाएंगी, लेकिन ब्रोकरेज का मानना है कि वे मार्जिन पर संभवत: चोट कर सकती हैं।
जेफरीज के माहेश्वरी की अगुआई में विश्लेषकों का मानना है कि नई फर्मों की आक्रामक रणनीति के कारण डीलरों को ज्यादा कमीशन व प्रमोशन आदि कदम उठाए जा सकते हैं, जिससे कम से कम मध्यम अवधि में उद्योग के लाभ पर चोट पहुंचेगी।
मामला यहीं तक नहीं रुकेगा क्योंकि छोटी व मध्यम आकार की कंपनियां (कामधेनु पेंट्स अपना राजस्व वित्त वर्ष 26 तक 1,000 करोड़ रुपये पर पहुंचाना चाहती है) भी आगे बढ़ना चाहती हैं और क्षेत्रीय रणनीति अपना सकती हैं।
इन चिंताओं को देखते हुए कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों ने कहा कि एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स और कंसाई नेरोलैक पेंट्स की दोबारा रेटिंग की और गुंजाइश बनती है।
मूल्यांकन के मोर्चे पर बर्जर पेंट्स व कंसाई नेरोलैक के गुणक की रेटिंग में पिछले कुछ महीनों में खासा परिवर्तन हुआ है और ये निराशाजनक वॉल्यूम और नई प्रतिस्पर्धियों की चिंता में ये कोविड पूर्व के गुणक पर ट्रेड कर रहे हैं। हालांकि एशियन पेंट्स अभी भी कोविड पूर्व उच्चस्तर वाले गुणक से ऊपर कारोबार कर रही है।