वित्त वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा कहती है कि निवेश गतिविधियों में हालिया नरमी अस्थायी होने की संभावना है और अब इसमें सुधार के शुरुआती संकेत दिखने लगे हैं। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी निवेश बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि सिर्फ सरकारी निवेश से ही जरूरी बुनियादी ढांचा नहीं तैयार किया जा सकता है। देश के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने की मांग को अकेले सार्वजनिक पूंजी ही पूरा नहीं कर सकती है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘पूंजी निर्माण में वृद्धि के संकेत नजर आ रहे हैं और जुलाई-नवंबर 2024 के दौरान केंद्र सरकार का पूंजीगत खर्च 8.2 फीसदी बढ़ा है। आगे इसमें और तेजी की उम्मीद है।’ समीक्षा में बताया गया है कि निजी निवेश पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नवीनतम रिपोर्ट से भी पता चलता है कि वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में निजी क्षेत्र निवेश के लिए तैयार हैं।
आरबीआई की ऑर्डर बुक, इन्वेंट्री और क्षमता उपयोगिता सर्वेक्षण (ओबिकस)के प्रारंभिक नतीजों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में भारतीय विनिर्माण कंपनियों में मौसमी आधार पर क्षमता उपयोगिता 74.7 फीसदी पर पहुंच गई है, जो इसके दीर्घकालिक औसत 73.8 फीसदी से अधिक है।
निजी निवेश पर आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025 में निवेश करने की प्रतिबद्धता बढ़कर 2.45 लाख करोड़ रुपये रही जो वित्त वर्ष 2024 में 1.6 लाख करोड़ रुपये थी। इसके अलावा कुछ मौजूदा निवेश प्रतिबद्धता भी हैं जिन पर वित्त वर्ष 2026 में निवेश किए जाने की उम्मीद है। इसके अलावा पूंजीगत वस्तुओं की निजी क्षेत्र की कंपनियों के विश्लेषण के हवाले से आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि ऑर्डर बुक में तेजी से इजाफा हुआ है और यह पिछले चार साल में सालाना 4.5 फीसदी की चक्रवृद्धि दर बढ़ रही है जबकि वित्त वर्ष 2024 में यह 23.6 फीसदी बढ़ी है। वृद्धि का यह रुझान वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही तक जारी रहा और वित्त वर्ष 2024 से इसमें 10.3 फीसदी का इजाफा हुआ।
घरेलू स्तर पर इस्पात, सीमेंट, रसायन और पेट्रोरसायन जैसे उद्योगों में औद्योगिक वृद्धि में स्थायित्व आया है जबकि वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्युटिकल क्षेत्र ने वृद्धि को बढ़ावा दिया है। समीक्षा में कहा गया है, ‘शोध एवं विकास में निवेश, नवोन्मेष और वृद्धि को सहारा देने तथा छोटे विनिर्माताओं को औपचारिक बनाना विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार जारी रखने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण होगा। राज्य स्तर पर कारोबार में सुगमता भी औद्योगिक विकास में अहम भूमिका अदा कर सकती है।’
आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि वैश्विक विनिर्माण की ताकत बनने की भारत की आकांक्षा को पूरा करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, कौशल पारिस्थितिकी तंत्र, शिक्षा और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के सभी स्तरों से निरंतर और एकीकृत प्रयास की आवश्यकता होगी।