भारत की सबसे बड़ी सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (टीसीएस) नई एवं खास प्रतिभाएं तलाश रही है। ‘टैलेंट ऑन क्लाउड’ कार्यक्रम के तहत कंपनी कर्मचारियों से जुड़ी नीति को नया रूप दे रही है। इस पहल का जोर कुशल कर्मचारियों की ऐसी टीम तैनात करने पर है, जो दुनिया के किसी भी कोने से अपनी सुविधानुसार गुणवत्तापूर्ण सेवाएं दे सकें। कंपनी अल्गोरिदम आधारित प्रतिभा प्लेटफॉर्म, प्रतिभा विकास और आंतरिक स्तर पर गिग कर्मचारियों का समुदाय तैयार करने पर भी विचार कर रही है। टीसीएस में करीब 4.70 लाख लोग काम करते हैं और इस वजह से यह कंपनी के लिए बड़ी कवायद मानी जा रही है।
कंपनी के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी (सीएचआरओ) मिलिंद लक्कड़ के मुताबिक कंपनी की इस रणनीति का मकसद सही समय और सही स्थान पर उपयुक्त एवं प्रतिभावान लोगों की टीम तैयार करना है। वह कहते हैं, ‘टीसीएस ऐसी व्यवस्था तैयार करने पर जोर दे रही है, जिसके तहत कोई भी अपनी खूबियों और सुविधा के अनुसार दुनिया के किसी भी कोने से खास काम कर सकता है और ग्राहकों को बेहतर से बेहतर सेवाएं दे सकता है।’
लक्कड़ ने कहा कि ‘टैलेंट क्लाउड’ अल्गो टैलेंट डेवलपमेंट की मदद से तैयार किया जाएगा, जिससे विभिन्न तकनीकी माध्यमों से सेवाएं देने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘पूरे संगठन में कर्मचारियों की क्षमताओं से जुड़े व्यापक आंकड़ों की मदद से ऐसा करना हमारे लिए संभव हो रहा है।’ अल्गो टैलेंट मार्केटप्लेस स्वचालित, उच्च स्तरीय एवं इंटेलिजेंस इंजन है, जिसके जरिये कर्मचारियों की क्षमताओं एवं नौकरियों की जरूरत के अनुसार पसंद-नापसंद का आकलन किया जाता है। लक्कड़ ने कहा, ‘हम अपने कुछ नए कार्य मॉडलों जैसे गिग वर्कप्लेस का परीक्षण कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि अंशकालिक कार्यबल के रूप में परिवार एक वृहद कार्यबल का हिस्सा बन रहे हैं, ऐसे में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध हमारी कार्य शैली के लिहाज से अहम होने जा रहे हैं। लक्कड़ का मानना है कि टीसीएस अपनी ‘एजाइल 2020’ रणनीति के हिस्से के तौर पर आंतरिक गिग कर्मचारियों का आधार तैयार कर सकती है। वह कहते हैं, ‘तेजी से काम करने का मतलब स्वतंत्र रूप से कार्य को अंजाम देना है। क्या हम उन लोगों की पहचान कर सकते हैं जो कौशल के लिहाज से मंझे हुए हैं और गिग परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं।’ यह तरकीब दो परियोजनाओं में अपनाई गई है।
टैलेंट क्लाउड का मतलब उन विशेषज्ञों की पहचान करना भी है जो विभिन्न योजनाओं पर काम कर सकते हैं। लक्कड़ कहते हैं, ‘हम अपनी कंपनी के भीतर उन लोगों का समूह तैयार करना चाहते हैं जो एक जैसे कार्य करने में रुचि रखते हैं। चूंकि कार्य करने का स्थान अब कोई मायने नहीं रखता है, इसलिए हम यह देखना चाहते हैं कि एक विशेषज्ञ के तौर पर कोई कितनी परियोजनाओं की गुणवत्ता बढ़ा सकता है। इन लोगों के समूह को एक खास कार्यक्रम ‘कन्टेक्सचुअल मास्टर्स’ से साक्षात्कार कराया जाएगा, जिससे वे किसी दक्ष संस्थान में पढ़े लोगों की तरह ही काबिल बन जाएंगे।’ इस समय 15,000 लोग ‘कन्टेक्सचुअल मास्टर्स’ कार्यक्रम से लाभ उठा चुके हैं और कंपनी यह तादाद बढ़ाकर 50,000 करना चाहती है। कंपनी की इस नई मानव संसाधन रणनीति का स्थानीय स्तर पर नियुक्ति और वीजा पर भी असर होगा। लक्कड़ मानते हैं कि कोविड-19 महामारी ने साबित कर दिया है कि काम कहीं से निपटाया जा सकता है।
