Baba Ramdev: बाबा रामदेव अक्सर एलोपैथी को लेकर विवादों के घेरे में बने रहते हैं। आज यानी 16 अगस्त से तीन दिन पहले यानी 13 अगस्त को ही सुप्रीम कोर्ट ने एलोपैथी से ही जुड़े एक मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को राहत दी थी कि फिर से 15 अगस्त को बाबा रामदेव ने एक ऐसा बयान दे दिया कि विवाद ने नया तूल पकड़ लिया।
दरसअल, बाबा रामदेव 15 अगस्त को 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्तराखंड के हरिद्वार में एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। उस दौरान उन्होंने कहा कि एलोपैथी की दवाएं जहर होती हैं और उससे हर साल करोड़ों लोगों की मौत हो रही है।
बाबा रामदेव ने अपने भाषण में आगे कहा, ‘सोशल मीडिया के माध्यम से एक बड़ा वैचारिक युद्ध चल रहा है। यह भारत के बच्चों और युवाओं को नष्ट कर रहा है। यह लोगों में वासना को भड़का रहा है। बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। इसका एक कारण यह है कि हम योग से खुद को दूर कर रहे हैं। पूरे देश में एक ‘तांडव’ हो रहा है। भारत साधुओं की भूमि है और जब हम यहां सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएं देखते हैं, तो यह हमें झकझोर देता है। इसलिए, 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रतिज्ञा की है कि राजनीतिक, शैक्षणिक, चिकित्सा, आर्थिक, वैचारिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अलावा, हम इस देश में बीमारियों, नशीली दवाओं और वासना से मुक्ति दिलाने में मदद करेंगे…।’
गौरतलब है कि 13 अगस्त को जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद के को-फाउंडर बाबा रामदेव और प्रबंध निदेशक (MD) की तरफ माफी स्वीकार करने के बाद मामले को बंद कर दिया था। और सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को अपने पिछले आचरण को न दोहराने की चेतावनी भी दी थी और कहा था कि वे कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए कुछ भी फिर से करते हैं तो कोर्ट कड़ी सजा देगा।
दरसअल मामले की शुरुआत कोरोना महामारी के दौरान हुई। जब पूरा देश कोविड-19 वायरस के संक्रमण से जूझ रहा था और एलोपैथ से लेकर आयुर्वेद और अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियां दवाएं या वैक्सीन खोज रही थीं, तो उसी समय फरवरी 2021 में बाबा रामदेव ने कोरोना के इलाज का दावा करने वाली एक दवा लेकर आए। जिसका नाम था-कोरोनिल। बाबा रामदेव मे उसके बाद न्यूजपेपर्स में एलोपैथी के खिलाफ कई दावे किए और पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापन छपवाए। विज्ञापन में कहा गया कि एलोपैथी गलत धारणाएं फैला रही है। फार्मा और मेडिकल इंडस्ट्री की तरफ से फैलाई गई गलत धारणाओं से खुद को और देश को बचाएं।
कंपनी ने विज्ञापन दिया कि कोरोनिल ‘कोविड-19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा’ थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने उत्पाद को मान्यता दी थी। हालांकि, WHO ने जल्द ही इसका खंडन किया और कहा कि उसने कोरोना वायरस के इलाज के लिए किसी भी उपचार को मंजूरी नहीं दी है।
17 अगस्त 2022 को पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से एलोपैथी और कोविड वैक्सीन को लेकर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है।
नवंबर 2023 में, रामदेव और बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वे किसी भी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ भ्रामक बयानबाजी नहीं करेंगे। लेकिन एक दिन बाद ही, उन्होंने एलोपैथी को झूठ फैलाने वाला कहकर अदालत के आदेश का उल्लंघन किया। इसके अलावा, कंपनी ने दिसंबर में एक भ्रामक विज्ञापन भी जारी किया।
इसके बाद, फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को मानदंडों का उल्लंघन करने और अपने उत्पादों की प्रभावशीलता के बारे में झूठे दावे करके जनता को गुमराह करने के लिए अवमानना नोटिस जारी किया। यह नोटिस बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ जारी किया गया।
मार्च 2024 में अवमानना नोटिस का जवाब नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। कंपनी को अपने पूर्व के भ्रामक विज्ञापनों के लिए राष्ट्रीय डेली न्यूजपेपर्स में बिना शर्त सार्वजनिक माफी विज्ञापन जारी करने के लिए भी कहा गया।
अप्रैल में सुनवाई के दौरान रामदेव ने कोर्ट में अपनी बात रखी और कहा कि वह बिना शर्त माफी मांगना चाहते हैं और अपने बयानों पर अफसोस जताते हैं। रामदेव ने आगे कहा था कि चूंकि आयुर्वेद और एलोपैथी ज्यादातर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते हैं, इसलिए वह उत्साहित हो गए और बहक गए और ये बयान दे दिया।