अमेरिका की डस्टर एनर्जी के प्रेसिडेंट व मुख्य कार्याधिकारी अतनु मुखर्जी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को साक्षात्कार में बताया कि भारत सरकार कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) के लिए नीतिगत ढांचा तैयार करने के अग्रिम चरणों में है।
मुखर्जी ने कहा, ‘ऐसे संकेत मिले हैं कि इस दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है, ख्रासकर अगर सीसीयूएस में मदद के लिए कुछ नीतिगत साधन की बात करें तो।’
इस नीति का ढांचा उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना जैसा हो सकता है, जैसा कि जून 2023 में केंद्र द्वारा हरित हाइड्रोजन के लिए और बीते महीने कोयला गैसीकरण के लिए ऐलान किया गया था। सीसीयूएस के तहत कार्बन डाइऑक्साइड को बड़े स्रोत से लेकर उससे मूल्य वर्धित उत्पाद तैयार किए जाएंगे।
उदाहरण के लिए जीवाश्म ईंधन या बॉयोमास को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने वाली बिजली उत्पादन या औद्योगिक इकाइयाें से कार्बन डाइऑक्साइड एकत्रित की जा सकती है और इनसे मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे हरित यूरिया, भवन निर्माण के सामान जैसे कंक्रीट और रसायन जैसे एथनॉल और मेथनॉल बनाए जाएंगे।
ऊर्जा तकनीक कंपनी डस्टर एनर्जी की बौद्धिक परिसंपत्तियां व विशेषज्ञता स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों, औद्योगिक डीकार्बनाइजेशन, कार्बन डाइऑक्साइड को परिवर्तित करने की तकनीकों, गैस कंडीशनिंग व व्यर्थ गैस के प्रसंस्करण, हाइड्रोजन व स्वच्छ ईंधनों, गैसीकरण प्रौद्योगिकियों सहित कई चीजों में है। कंपनी ने नवंबर 2023 में नीति आयोग की पहल पर सीसीयूएस पर विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया था।
मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रीय नीति से स्टील, सीमेंट और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों को मदद मिलेगी। वैश्विक स्तर पर देश का उत्सर्जन घटाने की नीति का परीक्षण और सभी क्षेत्रों से कार्बन को समुचित ढंग से घटाने की एकजुटता हो गई है। ऐसे में भारत के नीति निर्माताओं को सीसीयूएस आकर्षक विकल्प नजर आता है।
पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि प्रमुख लक्ष्यों को हासिल करने में सीसीयूएस महत्त्वपूर्ण होगा। इन अहम लक्ष्यों में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन तक की कमी करने, 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन सघनता को घटाकर 45 फीसदी करने और 2050 तक कार्बन उत्सर्जन आधा करना शामिल है।
चीन और अमेरिका के बाद भारत कार्बन डाइऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत 2.65 गीगा टन (जीटी) कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है और वर्ष 2019 में कार्बन डाइऑक्साइड के कुल वैश्विक उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी करीब 7 फीसदी थी।
हमेशा भारत ने यह इंगित किया है कि चीन और अमेरिका की तुलना में वह कहीं कम उत्सर्जन करता है। वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अमेरिका की हिस्सेदारी 28 फीसदी और चीन की 15 फीसदी है।
तेल मंत्रालय के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र की हिस्सेदारी 68.7 फीसदी है। इसके बाद कृषि (19.6 फीसदी), औद्योगिक प्रसंस्करण (6 फीसदी), जमीन के इस्तेमाल में बदलाव (3.8 फीसदी) और वानिकी (1.9 फीसदी) हैं। मंत्रालय ने 2022 में ‘2030 के सीसीयूएस रोडमैप’ का मसौदा तैयार करने के लिए कार्यबल तैयार किया था। इसका ध्येय सीसीयूएस तकनीकों को विकसित करना और बढ़ाना था।