सर्वोच्च न्यायालय ने स्पाइसजेट के प्रवर्तक अजय सिंह और इस विमानन कंपनी के पूर्व प्रवर्तक कलानिधि मारन के बीच शेयर हस्तांतरण विवाद मामले में स्पाइसजेट की सुलह पेशकश पर मारन और उनकी विमानन कंपनी केएएल एयरवेज को विचार करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही स्पाइसजेट में शेयर हस्तांतरण को लेकर लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद थम सकता है।
विमानन कंपनी ने आज एक बयान में कहा, ‘स्पाइसजेट ने अपने पूर्व प्रवर्तक कलानिधि मारन और उनकी कंपनी केएएल एयरवेज के साथ शेयर हस्तांतरण मामले में विवाद को पूरी तरह निपटाने के लिए 600 करोड़ रुपये के नकद भुगतान की पेशकश की है।’ यह पेशकश सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान की गई। न्यायालय ने मारन पक्ष को स्पाइसजेट के इस प्रस्ताव पर विचार करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी।
विमानन कंपनी ने कहा, ‘मध्यस्थता फैसले के तहत निर्धारित 578 करोड़ रुपये की मूल रकम में से स्पाइसजेट 308 करोड़ रुपये का नकद भुगतान पहले ही कर चुकी है और उसने बैंक गारंटी के तौर पर 270 करोड़ रुपये जमा कराए हैं।’ स्पाइसजेट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी शीर्ष अदालत में मौजूद थे। उन्होंने बैंक गारंटी के बराबर यानी 270 करोड़ रुपये के अलावा 22 करोड़ रुपये अतिरिक्त यानी कुल 600 करोड़ रुपये के भुगतान के साथ दोनों पक्षों के बीच सभी विवादों को पूरी तरह निपटाने का प्रस्ताव दिया।
मीडिया खबरों के अनुसार, यदि मारन इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं तो बैंक गारंटी के तौर पर उनके लिए रखी गई रकम को कम करने का आग्रह किया जा सकता है। यह विवाद 2015 में उस समय सामने आया था जब स्मााइसजेट के वित्तीय संकट में फंसने के दौरान मारन ने विमानन कंपनी में अपनी 58.46 फीसदी हिस्सेदारी यानी 5.04 करोड़ शेयरों को 2 रुपये की मामूली कीमत पर सिंह को बेच दिया था। मारन ने 2016 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख करते हुए सिंह पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगया था। उन्होंने कहा था कि 679 करोड़ रुपये के निवेश के बावजूद उन्हें 18.9 करोड़ के शेयर वारंट और तरजीही शेयर जारी नहीं किए गए हैं। उन्होंने स्पाइजेट और सिंह पर 1,300 करोड़ रुपये के बकाये का दावा किया। जुलाई 2016 में उच्च न्यायालय ने मारन और सिंह को मध्यस्थता ट्रिब्यूनल के जरिये विवाद को निपटाने का निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल ने 2018 में मारन और केएएल एयरवेज के दावे को खारिज कर दिया। मारन ने 2020 में सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश को खत्म किया जाए।
