आर्थिक संकटों का सामना कर रही एडटेक फर्म बैजूस को सर्वोच्च न्यायालय से बुधवार को बड़ा झटका मिला है। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (एनसीएलएटी) के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें बैजूस को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान की अनुमति दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्र के पीठ ने कहा, ‘हम एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगा रहे हैं। यह आदेश अविवेकपूर्ण है।’ पीठ ने बीसीसीआई को बैजसू द्वारा किए गए भुगतान को एक अलग एस्क्रो खाते में रखने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा, ‘नोटिस जारी करें। दो अगस्त को जारी एनसीएलएटी के अवेविकपूर्ण आदेश पर अगले आदेश तक रोक रहेगी। इस बीच, बीसीसीआई को 158 करोड़ रुपये अगले आदेश एक अलग एस्क्रो खाते में रखने होंगे।’
बीसीसीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि फिलहाल एनसीएलएटी की कार्यवाही पर रोक लगाना उनके लिए हानिकारक होगा क्योंकि कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि अगर एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाई जाती है तो बैजूस के लिए ऋणदाताओं की समिति गठिन हो सकती है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उनसे पूछा कि आप किसकी ओर से बहस कर रहे हैं। बीसीसीआई की तरफ से या बैजूस के लिए? इस पर मेहता ने कहा कि मैं बैजूस की ओर से बहस नहीं कर रहा हूं। ऋणदाताओं के वकील ने कहा, ‘कृपया अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) को बहाल किया जाए अन्यथा वे सब कुछ
निकाल लेंगे।’
अदालत में अमेरिकी ऋणदाता ग्लास ट्रस्ट इंक की याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें उसने बैजूस और बीसीसीआई के बीच हुए समझौते का विरोध किया है। ट्रस्ट का दावा है कि बैजूस के उस पर 8 हजार करोड़ रुपये से अधिक बकाया हैं और वित्तीय ऋणदाता के तौर पर उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
अपील अधिकरण ने बीते 2 अगस्त को आदेश जारी कर कहा था कि यह मानते हुए कि बीसीसीआई को भुगतान की जाने वाली रकम का स्रोत विवादित नहीं है। इसलिए ऋणदाताओं की समिति के गठन से पहले समझौता किया जा रहा है।
साथ ही कंपनी को भी दिवाला कार्यवाही में रखने का कोई औचित्य नहीं है। इस समझौते का बैजूस के अमेरिकी ऋणदाताओं ने विरोध किया था। उन्होंने एनसीएलएटी से कहा था कि ऋण के भुगतान में उपयोग होने वाली रकम साफ नहीं है क्योंकि यह वही रकम है 53.3 करोड़ डॉलर में से गायब हो गई थी।