सरकारी कंपनी शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) के निजीकरण में देरी हो सकती है और यह इस वित्त वर्ष 2024-25 के बाद भी हो सकता है। इस मामले के जानकार एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र को इस दिग्गज जहाजरानी कंपनी की गैर-प्रमुख परिसंपत्तियों के विभाजन के बाद महाराष्ट्र सरकार के साथ ‘दस्तावेजीकरण मुद्दों’ को हल करने के लिए जूझना पड़ रहा है।
अधिकारी ने बताया, ‘एससीआई के विनिवेश पर आगे कोई प्रगति नहीं हुई है।’ उन्होंने बताया कि वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारी मुंबई जाकर कलेक्टर से मिले थे और स्थिति की समीक्षा की थी। लेकिन कोई त्वरित प्रगति नहीं हुई है।
नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ने एससीआई की गैर प्रमुख संपत्तियों को अलग कर दिया था और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लैंड ऐंड ऐसेट लिमिटेड (एससीआईएलएएल) का गठन किया। इस कदम से एससीआई की अचल संपत्तियों का स्थानांतरण हुआ था।
इस क्रम में मुंबई में 19 मंजिला इमारत ‘शिपिंग हाउस’ और मेरीटाइम ट्रेनिंग इंस्टीट्यृट का स्थानांतरण एससीआईएलएएल को हो गया था। अब सभी गैर प्रमुख परिसंपत्तियां, जैसे जहाजरानी से जुड़ी नहीं रहने वाली सभी अचल संपत्तियां एससीआईएलएएल के स्वामित्व में हैं। इस नई इकाई को 19 मार्च, 2024 को शेयर बाजार में सूचीबद्ध भी कराया गया।
निजीकरण का दारोमदार संभालने वाले निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) ने एससीआई में 63.75 फीसदी की पूरी सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश के लिए अभिरुचि पत्र दिसंबर 2020 में आमंत्रित किए थे।
इस सिलसिले में दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि एससीआईएलएएल के सूचीबद्ध होने के बाद कई कानूनी दस्तावेज को दुरुस्त करने की जरूरत होगी जिसकी वजह से अभिरुचि पत्र की प्रक्रिया बाधित हुई।
पांडेय ने बताया था, ‘एससीआईएलएएल के अलग कंपनी बनने के बाद सरकारी दस्तावेजों में बदलाव की जरूरत होगी। इसके कई पट्टे एससीआई के नाम हैं। लिहाजा सभी पट्टों और दस्तावेजों को अद्यतन करने की आवश्यकता है।’ पांडेय ने बताया कि निजीकरण की प्रक्रिया के लिए इन मुद्दों का समाधान करना अहम है।
उन्होंने बताया कि कई सार्वजनिक क्षेत्र के मामलों में दस्तावेज बहुत स्पष्ट नहीं हैं। सार्वजनिक क्षेत्रों ने जब जमीन का अधिग्रहण किया था तब आमतौर पर लीज नहीं था – यह व्यवस्था संभवत: उनके अधिग्रहण के कुछ समय बाद आई।
उस समय आमतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र का ही निवेश होता था, लिहाजा राज्य सरकारें न्यूनतम औपचारिकताओं के साथ भूमि का आवंटन कर देतीं थीं। अब हम उनसे उचित दस्तावेज प्राप्त करने के लिए कह रहे हैं ताकि निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी सुनिश्चित हो सके। इसको लेकर निजी क्षेत्र बेहद सजग है।