अनिल अंबानी प्रवर्तित रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर (आर-इन्फ्रा) ने शुक्रवार को कहा कि उसकी संयुक्त उपक्रम सहायक इकाइयां बीएसईएस यमुना पावर और बीएसईएस राजधानी पावर चार साल के दौरान 28,483 करोड़ रुपये की ‘रेग्युलेटरी ऐसेट्स’ की वसूली करेंगी।
दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) ने 31 जुलाई, 2025 तक इन परिसंपत्तियों को मान्यता दी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त को बीएसईएस यमुना पावर और बीएसईएस राजधानी पावर द्वारा 2014 में दायर याचिकाओं और सिविल अपीलों पर अपना फैसला दिया। रेग्युलेटरी ऐसेट्स किसी कंपनी की बैलेंस शीट पर एक ऐसी रकम होती है जो ग्राहकों से लागत वसूलने के भविष्य के अधिकार के बारे में बताती है और जो किसी नियामकीय निकाय से अनुमोदित होती है।
डीईआरसी कंपनी को रेग्युलेटरी ऐसेट्स की वसूली के लिए टैरिफ संशोधन और चार साल की परिसमापन योजना का प्रस्ताव दे सकता है। संशोधित दरों के तहत लागत उपभोक्ताओं को उठानी होगी। इस घटनाक्रम से वाकिफ एक सूत्र ने कहा, ‘हालांकि अदालत ने निर्देश दिया है कि शुल्क का कोई दबाव नहीं डाला जाना चाहिए। इसलिए डीईआरसी को यह देखना होगा कि वह इस पर कैसे आगे बढ़े।’
इसके अलावा, आर-इन्फ्रा की सहायक कंपनियों पर दिल्ली की बिजली कंपनियों का लगभग 21,000 करोड़ रुपये बकाया है। सूत्र ने कहा, ‘अगर दिल्ली सरकार उस राशि को समायोजित करने के लिए सहमत हो जाती है, तो शेष राशि डीईआरसी के टैरिफ संशोधन के माध्यम से वसूली जा सकती है। लेकिन यह कई शर्तों पर निर्भर करता है।’ राज्य सरकारों और राज्य विद्युत विनियामक आयोगों (ईआरसी) से संबंधित सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने रेग्युलेटरी ऐसेट्स के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी किए और उनकी वसूली का निर्देश दिया।
उसने बीएसईएस डिस्कॉम की याचिकाओं और सिविल अपीलों का निपटा दिया और रेग्युलेटरी ऐसेट्स, टैरिफ के निर्धारण के लिए नियामक व्यवस्था में उनकी स्थिति, नियामकों (ईआरसी) के कर्तव्यों और जवाबदेही तथा विद्युत के लिए अपीली न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) के अधिकारों से संबंधित मुद्दे की जांच के लिए 10 ‘सूत्र’ (दिशानिर्देश) निर्धारित किए।
बीएसईएस यमुना पावर और बीएसईएस राजधानी पावर दोनों में आर-इन्फ्रा की 51-51 प्रतिशत हिस्सेदारी है। दोनों कंपनियों में शेष स्वामित्व (49 प्रतिशत) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के पास है।