भुगतान में चूक पर दूरसंचार विभाग अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस का लाइसेंस रद्द करने की ओर बढ़ रहा है। समझा जाता है कि प्रक्रिया के मुताबिक लाइसेंस रद्द करने से पहले विभाग उस कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा।
अधिकारी के मुताबिक, लाइसेंस करार के उपबंध सरकार को कंपनी का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार देते हैं। इस महीने कंपनी के रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल ने एनसीएलटी के मुंबई पीठ को सूचित किया था कि अगर दूरसंचार विभाग लाइसेंस रद्द करता है तो आरकॉम की दिवालिया प्रक्रिया अधर में लटक जाएगी।
अगस्त 2020 में दूरसंचार विभाग ने एनसीएलटी से संपर्क कर कहा था कि आरकॉम व उसकी सहायक रिलायंस टेलिकॉम के समाधान का हिस्सा स्पेक्ट्रम नहीं होना चाहिए। दूरसंचार विभाग ने अपने एतराज का ब्योरा देते हुए शपथपत्र जमा कराया था, जिसमेंं कहा गया था कि समाधान प्रक्रिया के तहत स्पेक्ट्रम की बिक्री नहीं हो सकती।
आरकॉम के पास देशव्यापी लाइसेंस और 22 में से 14 सर्कल में 850 मेगाहट्र्ज बैंड मेंं स्पेक्ट्रम है। मार्च 2020 में कंपनी की लेनदारों की समिति ने समाधान प्रक्रिया को मंजूरी दी थी, जिसके तहत यूवी ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी 12,760 करोड़ रुपये में कंपनी का स्पेक्ट्रम खरीदेगी, जिसका भुगतान 12 वर्ष में होगा और इसके तहत 5 करोड़ रुपये अग्रिम भुगतान किए जाएंगे। यह दिवालिया संहिता की कार्यवाही के तहत हुआ था।
आरकॉम पर लेनदारों का 49,054 करोड़ रुपये बकाया है जबकि सरकारी अनुमान के मुताबिक स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज व लाइसेंस शुल्क के तौर पर दूरसंचार विभाग का 25,199 करोड़ रुपये बकाया है।
यूवी ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी और रिलायंस जियो ने कुल मिलाकर इसकी परिसंपत्तियों के लिए 20,000 करोड़ रुपये की पेशकश की है। दोनों कंपनियां आरकॉम के स्पेक्ट्रम, रियल एस्टेट, एंटरप्राइज, टावर और डेटा सेंटर कारोबार की सफल बोलीदाता हैं।
आरकॉम व रिलायंस टेलिकॉम की समाधान योजना को एनसीएलटी ने अभी मंजूरी नहीं दी है। रिलायंस इन्फ्राटेल के तहत टावर की बिक्री रिलायंस जियो की इकाई को करीब 5,000 करोड़ रुपये में करने की मंजूरी दे दी गई है।
आरकॉम व उसकी दो इकाइयों रिलायंस टेलिकॉम व रिलायंस इन्फ्राटेल की परिसंपत्तियों की बिक्री से 20,000-23,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। स्पेक्ट्रम के अलावा बिक्री वाली परिसंपत्तियों में टावर, फाइबर, एंटरप्राइज कारोबार, डेटा सेंटर व जमीन शामिल है।
आईबीसी के तहत लेनदारों का दावा 57,000 करोड़ रुपये का है। लेकिन परिचालक लेनदार के तौर पर डॉट अपने बकाए का एक हिस्सा ही रिकवर कर पाएगा, जब भी आईबीसी के तहत इन परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण होगा।
