नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने रिलायंस जियो की सहायक इकाई द्वारा दायर उस याचिका को फिलहाल टाल दिया जिसमें लेनदारों से रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) और रिलायंस इन्फ्राटेल की फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट की मांग की गई थी। अब मामले की सुनवाई 7 मार्च को होगी।
रिलायंस जियो की सहायक इकाई रिलायंस प्रोजेक्ट्स ऐंड प्रॉपर्टीज ने दिसंबर 2020 में रिलायंस इन्फ्राटेल के अधिग्रहण की दौड़ में कामयाबी हासिल की थी। उसने देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक कंपनी से फोरेंसिक रिपोर्ट की मांग के साथ अदालत का रुख किया जिसमें रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहायक इकाइयों को फर्जी खाता घोषित किया गया है। रिलायंस प्रोजेक्ट्स ने दिसंबर 2020 में आरकॉम की टावर एवं फाइबर परिसंपत्तियों को 4,400 करोड़ रुपये में खरीदने के लिए आदेश हासिल किया था।
मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस जियो का कहना है कि वह नए तथ्यों के मद्देनजर इस अधिग्रहण का भविष्य जानना चाहती है। तथ्यों में कहा गया है कि एसबीआई ने बोली प्रक्रिया के दौरान कंपनी की फोरेंसिक ऑडिट कराई थी लेकिन उसने बोलीदाताओं को उस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी।
मई 2018 में भारतीय लेनदारों ने 46,000 करोड़ रुपये के बकाये की अदायगी में विफलता के बाद रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहायक इकाइयों के खिलाफ दिवालिया अदालत में शिकायत की थी। हालांकि मार्च 2020 में रिलायंस कम्युनिकेशंस के अधिग्रहण की दौर में यूवी एआरसी सफल रही थी लेकिन उसकी टावर परिसंपत्तियों के लिए जियो की बोली सबसे अधिक थी। तभी से आरकॉम का मामला विभिन्न अदालतों में लंबित है। सरकारी बकाये के भुगतान को लेकर यूवी एआरसी द्वारा अधिग्रहण का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है। दूरसंचार विभाग ने सबसे पहले अपने बकाये के भुगतान की मांग की थी जिसके बाद मामला अदालत पहुंच गया था।
एक सूत्र ने कहा कि रिलायंस इन्फ्राटेल की समाधान योजना को करीब 14 महीने पहले एनसीएलटी द्वारा मंजूरी दे दी गई थी लेकिन रिलायंस जियो और एसबीआई के बीच मुकदमेबाजी के कारण वह प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। इस बीच रिलायंस जियो रिलायंस इन्फ्राटेल की टावर एवं फाइबर परिसंपत्तियों का लगातार इस्तेमाल कर रही है लेकिन लेनदारों को अपने बकाये के भुगतान के लिए इंतजार करना पड़ रहा है क्योंकि कंपनी को दिवालिया अदालत भेज दिया गया था।
एक बैंकर के अनुसार, लेनदारों को पिछले 14 महीनों के दौरान करीब 300 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है जबकि उनकी पूंजी फंसी हुई है।