बीएस बातचीत
प्रमुख इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) का मानना है कि चालू वित्त वर्ष काफी कठिन होगा क्योंकि देश को अपनी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से दुरुस्त करना पड़ेगा। एलऐंडटी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी एसएन सुब्रमण्यन का कहना है कि इस साल सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र से होने वाला पूंजीगत व्यय 3 से 4 लाख करोड़ रुपये कम रहेगा। अमृता पिल्लई से बातचीत में उन्होंने साल के आखिर में अधिक ऑर्डर मिलने की उम्मीद जताई क्योंकि दीर्घावधि रोजगार सृजित करने के लिए सरकार को परियोजनाओं की घोषणा करने की आवश्यकता है। पेश हैं मुख्य अंश:
आप अपनी कंपनी के लिए और वृहत आर्थिक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में स्थिरता कब तक देखते हैं?
भारत में हमारे मौजूदा ऑर्डर बैकलॉक में निजी क्षेत्र का योगदान 20 फीसदी है जबकि शेष 80 फीसदी सार्वजनिक क्षेत्र, राज्य एवं केंद्र सरकार के बीच विभाजित है। इसमें से 35 से 40 फीसदी ऑर्डर बहुपक्षीय वित्त पोषित है। कोई भी यह सवाल पूछ सकता है कि मौजूदा वैश्विक महामारी का केंद्र और राज्य सरकारों के बजट पर क्या प्रभाव पड़ा है और आगे उसकी क्या स्थिति रहेगी? विशेष तौर पर केंद्र सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपाय अभूतपूर्व हैं। उन्होंने बाजार में नकदी प्रवाह को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के आवंटन किए हैं। उदाहरण के लिए, डिस्कॉम को 90,000 करोड़ रुपये का वित्त पोषण और राज्यों को 2 फीसदी अधिक कर्ज लेने की अनुमति देना, दो बड़े कदम हैं।
क्या आप केंद्र, राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र से पूंजीगत व्यय में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं?
हमारी आंतरिक गणना के आधार पर, केंद्र और विभिन्न राज्यों के पूंजीगत खर्च में इस साल 3 से 4 लाख करोड़ रुपये की कमी आने की आशंका है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सार्वजनिक क्षेत्र, केंद्र और राज्य सरकारों का पूंजीगत व्यय 15.1 लाख करोड़ रुपये था। लेकिन हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए यह घटकर 11.3 लाख करोड़ रुपये रह जाएगा जिससे ऑर्डर पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा। हमें पिछले साल के स्तर को बनाए रखने के लिए कहीं अधिक आक्रमक रुख अपनाने की जरूरत है अथवा हमें अफ्रीका एवं सुदूर पूर्व में मौजूद अवसरों के जरिये इसकी कुछ भरपाई करने पर ध्यान देना होगा।
इस साल ऑर्डर के आकार और प्रकृति के बारे में आप क्या कहेंगे?
हम भारी इंजीनियरिंग, भारी सिविल, जल, बिजली पारेषण आदि क्षेत्रों में ऑर्डर बुक होने और कुछ बोलियों को ठेके में परिवर्तित होने की उम्मीद करते हैं। जबकि भवन निर्माण, परिवहन, हाइड्रोकार्बन आदि क्षेत्रों में स्थिति जनवरी-फरवरी की तरह नहीं दिखेगी। केंद्र और राज्य सरकारों का नजरिया बिल्कुल स्पष्ट है कि वे अर्थव्यवस्था को सुचारु करना चाहते हैं। लेकिन इसका एकमात्र तरीका है परियोजनाओं की घोषणा करना। निविदाएं निकाली जाएं और ठेकेदारों को रोजगार सृजित करने के लिए कहा जाए। मनरेगा के जरिये रोजगार सृजन लघु अवधि का समाधान है। लेकिन लंबी अवधि के रोजगार सृजित करने के लिए परियोजनाओं की घोषणा करना एकमात्र उपाय है। इसलिए मुझे लगता है कि आगे कई परियोजनाएं सामने आएंगी जिसका लाभ हमें भी मिलना चाहिए।
क्या निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में अधिक समय लगेगा?
हमें अगले एक या दो वर्षों के दौरान निजी क्षेत्र से कोई उल्लेखनीय पूंजीगत व्यय होता नहीं दिख रहा है। निजी क्षेत्र की कंपनियों के बहीखाते काफी सिकुड़ गए हैं। दो महीने तक कारोबार बंद रहा जिससे उन्हें काफी राजस्व नुकसान हुआ है। इसमें समय लगेगा।
आपने कहा कि कंपनी को कोविड-19 के कारण अब तक 15 से 17 हजार करोड़ रुपये का बिलिंग नुकसान हुआ है। इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
जहां तक हमारा सवाल है तो जब तक हम परियोजना स्थल पर मौजूद नहीं होंगे, तब तक हम अपना अधिकांश काम नहीं कर सकते। यहां तक कि अप्रैल और मई के दौरान भी हमें बिल भरना पड़ा लेकिन अब हम बिल के करीब पहुंच चुके हैं। हालांकि हमें अभी भी ऑर्डर बैकलॉग को पूरा करने की जरूरत है। मान लीजिए कि जून से जुलाई के दौरान 2,30,000 श्रमिक हमारे साइट पर वापस आ जाते हैं तो भी हमें दो पाली में काम करने की जरूरत होगी। हमें कम लोगों के साथ अधिक काम करने के रास्ते तलाशने होंगे। स्थिति अभी भी काफी खराब है और हम नहीं जानते कि इस वैश्विक महामारी का अंतिम प्रभाव क्या होगा।