प्रमुख दवा निर्माता कंपनियां जैसे रैनबैक्सी लैबोरेटरीज, सिप्ला, कैडिला फार्मास्युटिक्लस, निकोलस पीरामल और वॉकहार्ड जल्द ही बाजार से लगभग 60 दवाओं को वापस ले लेंगी।
यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है, क्योंकि माना जा रहा है कि अलग-अलग दवाओं से बनी इन एक दवा की जरूरत नहीं है और वे सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। फार्मा उद्योग और केन्द्रीय दवा स्तर नियंत्रण संस्था (सीडीएससीओ) के बीच पहले काफी लड़ाई चल रही थी, जिसके बाद सीडीएससीओ ने जून में लगभग 294 ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया जो बाजार में 1,053 ब्रांडों के तले बेची जा रही थीं।
उद्योग जगत की भाषा में इन्हें ‘अतार्किक’ मिश्रण कहा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि उदाहरण के लिए पैरासिटामॉल और एनाल्गिन को मिलाकर बनाई गई दवा की जरूरी ही नहीं है। दोनों दवाएं एक जैसा काम करती हैं और इनमें से कोई एक दवा ही काफी है। मिश्रणों में सूझ-बूझ की कमी को ही संस्थाएं ठीक करना चाहती हैं।
अभी इन 60 दवाओं का बाजार मूल्य सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, लेकिन इससे उद्योग को काफी बड़ा धक्का लगेगा। अगर दवा निर्माता कंपनियां सभी 294 दवाओं को बाजार से वापस ले लेती हैं, तो कम से कम भी 3 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा। सूत्रों का कहना है कि जो दवाएं कंपनियां बंद कर सकती हैं, वे ज्यादातर सस्ती दवाएं हैं और इनमें दो या उनसे अधिक दवाओं के मिश्रण बेतुके हैं।