वेनेजुएला को दरकिनार करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हालिया आदेश के बाद इस दक्षिण अमेरिकी देश में फंसे हुए लाभांश को वापस लाना भारत की प्रमुख तात्कालिक चुनौती हो सकती है। भारत की सरकारी तेल कंपनियां वहां की परियोजनाओं से फंसे हुए लाभांश को लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं।
अधिकारियों ने कहा कि वेनेजुएला में फंसे हुए लाभांश को वापस लाना कच्चे तेल के आयात में कमी की भरपाई करने से भी अधिक जरूरी हो सकता है। ओएनजीसी की विदेशी इकाई ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) की स्थानीय परिसंपत्तियों से 50 करोड़ डॉलर से अधिक का लाभांश फंसा हुआ है। ट्रंप ने सोमवार को कहा कि 2 अप्रैल से वेनेजुएला से तेल एवं गैस खरीदने वाले देशों पर कुल 25 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा। वेनेजुएला की सरकार के प्रति ट्रंप के सख्त रुख के कारण वहां से भारत के कच्चे तेल के आयात में कमी आने के आसार हैं। वित्त वर्ष 2025 में भारत के कुल कच्चे तेल के आयात में वेनेजुएला का योगदान 0.92 फीसदी था।
अधिकारी ने कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इससे अमेरिकी विदेश विभाग और विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफएसी) से प्रतिबंधों में छूट और अमेरिकी डॉलर के उपयोग के साथ वेनेजुएला में काम करने की अनुमति हासिल करने संबंधी ओवीएल के प्रयास बाधित होंगे।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘दो परियोजनाओं में स्वामित्व हासिल करने के लिए उसी प्रकार लाइसेंस मांगा गया था जिस प्रकार एक अमेरिकी तेल उत्पादक को दिया गया था। मगर मौजूदा परिवेश में लाइसेंस हासिल करना कठिन होगा लेकिन हम अमेरिका के साथ चर्चा के दौरान यह मुद्दा उठाएंगे।’
ओवीएल ने 2008 में वेनेजुएला के सैन क्रिस्टोबल फील्ड में 40 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की थी। शेष हिस्सेदारी वहां की सरकारी कंपनी पेट्रोलियोस डी वेनेजुएला, एस. ए. (पीडीडीवीएसए) के पास थी। यह वेनेजुएला के विशाल ओरिनोको हैवी ऑयल बेल्ट (जिसे फाजा के नाम से जाना जाता है) के जूनिन नॉर्टे ब्लॉक में स्थित है। वहां 23.24 करोड़ बैरल कच्चे तेल का भंडार मौजूद है, जिससे 1,00,000 बैरल प्रति दिन तक का उत्पादन हो सकता है।
ओवीएल को इस क्षेत्र से उत्पादित तेल के लिए अंतिम बार 2008 में 5.62 करोड़ डॉलर का वार्षिक लाभांश प्राप्त हुआ था। फिलहाल वहां करीब 50 करोड़ डॉलर का लाभांश अटका हुआ है। एक सरकारी तेल रिफाइनरी के अधिकारी ने कहा, ‘हम ओवीएल के हिस्से के कच्चे तेल को बेचना चाहते हैं, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में यह आसान नहीं होगा।’
उन्होंने कहा कि बकाये को किस्तों में निपटाने के लिए सभी पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था। ओवीएल को मार्च 2017 तक तीन किस्तों में करीब 8.8 करोड़ डॉलर प्राप्त हुए, मगर उसके बाद वह व्यवस्था टूट गई। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि जनवरी 2024 में दक्षिण अमेरिका के इस देश ने लाभांश के बदले तेल देने पर राजी हो गया था।
ओवीएल की साल 2010 में स्थापित संयुक्त उद्यम पेट्रोकाराबोबो में भी 11 फीसदी हिस्सेदारी है। उसे ओरिनोको ऑयल बेल्ट के पूर्व में काराबोबो क्षेत्र से तेल का उत्पादन करने के लिए बनाया गया था। इसमें सरकारी तेल विपणन कंपनियों इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और ऑयल इंडिया लिमिटेड की 3.5 फीसदी हिस्सेदारी है। इसमें पीडीवीएसए की 71 फीसदी और रेपसोल की 11 फीसदी हिस्सेदारी है। ओवीएल के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि इन दोनों परियोजनाओं से रोजाना 12 से 15 हजार बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है। उन्होंने कहा था कि अगले दो-तीन साल में इसे बढ़ाकर 45 से 50 हजार बैरल प्रति दिन किया जा सकता है।