शापूरजी पलोनजी समूह (एसपी समूह) और टाटा संस एक बार फिर आमने-सामने नजर आ रहे हैं। इस बार संसद के पुनर्विकास की परियोजना पर खींचतान चल रही है। शापूरजी समूह ने टाटा समूह पर इस प्रतिष्ठित परियोजना की बोली के दौरान गंभीर कदाचार का आरोप लगाया है।
एसपी समूह ने परियोजना की नोडल एजेंसी केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को कई पत्र लिखकर कहा है कि इसमें टाटा संस के ‘हितों का टकराव हो सकता है।’ बिजनेस स्टैंडर्ड ने इनमें से दो पत्र देखे हैं। पहले पत्र में कहा गया है कि टाटा की दो कंपनी टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (टीपीएल) और टाटा कसंल्टिंग इंजीनियर्स (टीसीई) बोली प्रक्रिया में शामिल थीं, जो केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा तय नियमों के खिलाफ है।
पत्र में कहा गया है, ‘टीसीई इस परियोजना से जुड़ी है और परामर्श सेवाएं मुहैया करा रही है तथा टीपीएल ने भी इस परियोजना के लिए बोली लगाई है। बताना जरूरी है कि दोनों कंपनियां टाटा समूह से जुड़ी हैं और टाटा संस ने अपनी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहायक कंपनियों के जरिये इनमें हिस्सेदारी ले रखी है।’
सीपीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता को लिखे इस पत्र में शापूरजी पलोनजी ऐंड कंपनी ने सेंट्र्रल विस्टा परियोजना डिविजन-1 के लिए बोली प्रक्रिया की संपूर्ण समीक्षा की मांग की है। इस निविदा की बोलियां 16 सितंबर को खोली गई थीं, जिनमें टीपीएल अव्वल रही और परियोजना का ठेका उसे मिल गया। सीपीडब्ल्यूडी ने एसपी समूह को सूचित किया कि हितों का टकराव नहीं पाया गया है मगर इस बात को समूह ने खारिज कर दिया। उसने दूसरी चि_ी में लिखा, ‘हितों का टकराव नहीं होने की आपकी बात से हम सहमत नहीं हैं। बोली प्रक्रिया को निष्पक्ष नहीं माना जा सकता और चूंकि निविदा प्रक्रिया में सरकार और केद्रीय सतर्कता आयोग के नियमों का उल्लंघन हुआ, इसीलिए टाटा प्रोजेक्ट्स को अयोग्य करार देकर नए सिरे से निविदा मंगानी चाहिए।’
सूत्रों के अनुसार एसपी समूह ने टाटा समूह की दोनों कंपनियों पर कई आरोप लगाए हैं और कहा कि प्रक्रिया में टीसीई के शामिल होने से टीपीएल को ठेका हासिल करने में मदद मिली। यह भी आरोप लगाया कि टीपीएल को शामिल करने के लिए पात्रता-पूर्व बोली की शर्तों को बदला गया था। शुरुआत में बोली की शर्तों के तहत उन्हीं कंपनियों को बोली लगाने की अनुमति थी जिनके पास कंक्रीट की इमारत बनाने का अनुभव है। टीपीएल को शामिल करने के बाद बाद में इस्पात की इमारत भी जोड़ दिया गया।
इस बारे में पूछने पर टीपीएल के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमें तो निविदा की शर्तों और अन्य प्रावधानों में हितों के टकराव जैसी कोई बात नजर नहीं आती। बोली जमा कराने की तारीख तक आरएफक्यू दस्तावेज में पात्रता-पूर्व शर्तों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया था। टीपीएल के साथ छह अन्य कंपनियों ने आरएफक्यू प्रक्रिया में हिस्सा लिया था और हमारी बोली तथा अनुभव के आधार पर हमें सबसे योग्य माना गया। टीपीएल के पास इमारत तथा जटिल परियोजनाएं बनाने का व्यापक अनुभव है।’
टीपीएल और एलऐंडटी की बोलियों के बीच बहुत कम अंतर पर भी सवाल उठाए गए हैं। एलऐंटी ने 865 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी और टीपीएल की बोली 861.9 करोड़ रुपये की थी। टीपीएल के प्रवक्ता ने कहा, ‘प्रतिस्पर्धी बोलियों में इतना कम अंतर असामान्य बात नहीं है।’
इस बारे में जानकारी के लिए सीपीडब्ल्यूडी के अधिकारी अश्विनी मित्तल से संपर्क किया गया। एसपी समूह ने उन्हें ही चिट्ठी लिखी थीं। मित्तल ने किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया।