भारतीय दूरसंचार विधेयक का बहुप्रतीक्षित मसौदा चर्चा के लिए बुधवार रात जारी कर दिया गया। इसमें देश में दूरसंचार सेवाएं नियंत्रित करने वाले मौजूदा सांविधिक ढांचे में खासे बदलाव की बात कही गई है। विधेयक में स्पेक्ट्रम आवंटन की स्पष्ट रूपरेखा तय की गई है। आवंटन मुख्य तौर पर नीलामी के जरिये होगा मगर विशेष मामलों में सीधे आवंटन भी हो सकता है। इसके जरिये ओवर द टॉप (ओटीटी) संचार सेवाओं (व्हाट्सऐप, टेलीग्राम आदि) और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं को अन्य दूरसंचार सेवाओं की तरह नए कानून के दायरे में लाया गया है।
मसौदे में सरकार को कई शक्तियां दी गई हैं, जिनमें बट्टे खाते में डालना, बकाये को इक्विटी में बदलना और वित्तीय दिक्कतों के कारण भुगतान में चूक करने वाली दूरसंचार कंपनियों को राहत देना तथा भुगतान आगे टाल देना शामिल हैं। विधेयक में विलय एवं अधिग्रहण नियम आसान बनाए गए हैं और एक रूपरेखा तैयार की गई है ताकि राज्यों और नगर निगमों में रास्ते के अधिकार के नियम आसानी से लागू किए जा सकें।
हालांकि दूरसंचार कंपनियों और विश्लेषकों ने मसौदे में शामिल कई बातों पर चिंता जताई हैं। उनका कहना है कि इस विधेयक से ट्राई की सलाहकार की भूमिका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने विभिन्न हितधारकों से 20 अक्टूबर तक इस पर राय मांगी है। जानकार कह रहे हैं कि गंभीरता के साथ परामर्श करना है तो इतना समय काफी नहीं होगा। भारतीय सेल्युलर ऑपरेटर संघ ने एक बयान में कहा कि सरकार की सुधारवादी नीति के अनुरूप ही यह विधेयक भी आधुनिक एवं भविष्य के अनुरूप दूरसंचार वैधानिक ढांचा तैयार करने की राह में बड़ा पड़ाव है।
विधेयक में कहा गया है कि स्पेक्ट्रम आवंटन मुख्य तौर पर नीलामी के जरिये होगा, लेकिन रक्षा, परिवहन एवं अनुसंधान जैसे सरकारी एवं सार्वजनिक हितों के लिए इसका सीधा आवंटन भी किया जा सकता है। इससे सर्वोच्च न्यायालय के 2012 के आदेश से पैदा हुआ वह भ्रम भी दूर हो जाएगा कि स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी के जरिये ही हो सकता है।
एक दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मसौदे के तहत सरकार को प्रशासनिक प्रक्रिया के जरिये स्पेक्ट्रम आवंटन की सूची में किसी भी गतिविधि को शामिल करने की असीम शक्ति दे दी गई है। वह अपनी मर्जी से किसी भी क्षेत्र को इसमें शामिल कर सकती है। सरकार इस विधेयक के जरिये तय कीमत पर ही स्पेक्ट्रम आवंटन पर संसद की मुहर चाहती है।’
दूरसंचार विभाग ने सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए दूरसंचार कंपनियों की मांग को ध्यान में रखते हुए दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा का विस्तार करते हुए ओटीटी संचार सेवाओं, उपग्रह आधारित संचार सेवाओं और इंटरनेट को भी इस विधेयक के दायरे में ले लिया है। मसौदा विधेयक में रास्ते के अधिकार (आरओडब्ल्यू) को भी राज्यों एवं नगर निगमों में आसानी से लागू करने योग्य बनाया गया है। 5जी सेवाएं शुरू करने के लिए यह वैधानिक ढांचा बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि रास्ते का अधिकार देने के एवज में कई बार भारी कीमत मांगी जाती है। उनका कहना है कि मसौदा विधेयक में यह नहीं बताया गया है कि इस संबंध में निर्णय कौन लेगा, इसका शुल्क क्या होगा और अनुमति कब तक दे दी जाएगी।
दूरसंचार विश्लेषक महेश उप्पल ने कहा, ‘रास्ते का अधिकार इस विधेयक के प्रमुख सुधारों में शामिल है। इससे निजी दूरसंचार कंपनियां प्रभावित हो रही हैं। लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि केंद्र सरकार राज्यों अथवा नगर निगमों को इसके लिए मजबूर कैसे कर सकती है क्योंकि भूमि राज्य का मामला है।’