बीएस बातचीत
भारत में बीएस-6 उत्सर्जन मानदंडों को अपनाने के बाद एक स्क्रैपेज नीति लागू की जाएगी जिससे वाहन उद्योग के लिए नई प्रौद्योगिकी और मांग को रफ्तार मिल सकती है। वॉल्वो इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी कमल बाली ने ज्योति मुकुल से बातचीत में कहा कि उद्योग को एक स्पष्ट नीतिगत रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है, भले ही ईंधन का कोई भी विकल्प चुना गया हो। पेश हैं मुख्य अंश:
वाहन के लिए भारत को किस ईंधन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिए?
प्रत्येक ईंधन की अपनी खूबियां और खामियां हैं। कोई भी एक ऊर्जा वाहक जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी चुनौतियों से निपटने में समर्थ नहीं है। निकट भविष्य में ईंधन और ड्राइवलाइन साथ-साथ बरकरार रहेंगे। हरेक नए विकल्प में बड़े निवेश की आवश्यकता होगी। इसलिए सरकार को एक स्पष्ट दिशा और रूपरेखा के बारे में बताना चाहिए। यह मांग का आकलन करने और आवश्यक निवेश के लिए एक कारोबारी रणनीति तैयार करने के लिहाज से कंपनियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर हो रही चर्चा से ऐसा लगता है कि शहरों में सार्वजनिक परिवहन को पहली पसंद बनाने के मामले में वे अग्रणी हैं। केवल ऊर्जा वाहक पर ध्यान केंद्रित करके हम भविष्य में उस ओर आगे बढऩे के खतरे में हैं जहां शहरों में इलेक्ट्रिक वाहनों की भीड़भाड़ होगी। हमें स्थायी मोबिलिटी के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। शहरों के भीतर चलने वाली बसों के मामले में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक दोनों अच्छे हैं। इलेक्ट्रिक वाहन संवेदनशील क्षेत्रों के लिए है जबकि लंबी दूरी के लिए हाइब्रिड। बड़े परिवहन वाहनों के लिए एलएनजी बेहतर है।
क्या पुराने वाहनों के स्क्रैप होने पर उपयोगकर्ताओं को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए?
वाणिज्यिक वाहनों के लिए स्क्रैपिंग नीति एक नई मांग श्रेणी सृजित कर सकती है। यदि आप इस पर लंबी अवधि के संदर्भ में गौर करेंगे तो पाएंगे कि मांग का स्तर कहीं अधिक बड़ा होगा। एक बीएस-1 ट्रक के उत्सर्जन से मिलान के लिए 36 बीएस-6 ट्रक लगेंगे। यदि हम 15 साल से अधिक के ट्रक को स्क्रैप करते हैं तो उससे करीब डेढ़ से दो लाख अतिरिक्त वॉल्यूम मिल सकता है। यदि 15 साल से अधिक के हरेक ट्रक को हटा दिया जाता है तो यह संख्या कहीं अधिक होगी। पहली बार इस तरह की नीति को लागू किया जाएगा और इसलिए शुरुआती चिंताओं को दूर करने और मांग को बढ़ावा देने के लिए कर दरों और पंजीकरण लागत में नरमी के जरिये कुछ प्रोत्साहन जरूरी हो सकता है।
यूरोपीय संघ के मानकों का भारत में अनुकरण कितना व्यावहारिक होगा?
हम दुनिया भर के उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करते हैं। भारत की हमारी मीडियम-ड्यूटी इंजन फैक्टरी वैश्विक मांगों को पूरा करती है और इसलिए हम पहले से ही यूरो मानदंडों के अनुपालन वाले इंजन का उत्पादन करेंगे। भारत में बीएस-6 के लागू होने से पहले भी यही स्थिति थी। हालांकि स्थिरता (उत्सर्जन जिसका एक हिस्सा है) के लिए कई अन्य समस्याओं से निपटने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, सड़कों की बेहतर गुणवत्ता एवं डिजाइन, सतत यातायात प्रवाह, सही ऐप्लिकेशन के लिए सही परिवहन की अवधारणा, वाहनों के लिए ताकत बनाम वजन का सहीअनुपात और यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक परिवहन लोगों की पहली पसंद हो।
भारतीय वाहन क्षेत्र में मांग परिदृश्य कैसा दिख रहा है?
कई क्षेत्रों से मांग को रफ्तार मिल रही है, लेकिन उसका स्तर कम है। यहां तक कि वैश्विक महामारी के दौरान भी कृषि क्षेत्र का अच्छा प्रदर्शन रहा। इसके अलावा हमने ई-कॉमर्स क्षेत्र में काफी सुधार दर्ज किया है। कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें कोविड-पूर्व स्तरों पर लौटने की आवश्यकता है। लेकिन पीएमआई सूचकांक लगभग 58 अंक (अक्टूबर) पर है जो एक अच्छा संकेत है कि उद्योग का विस्तार हो रहा है।