जर्मनी की कंपनी मेट्रो एजी के भारतीय कारोबार मेट्रो कैश ऐंड कैरी का अधिग्रहण रिलायंस रिटेल ने दिसंबर में 2,800 करोड़ रुपये में कर लिया था। मेट्रो कैश ऐंड कैरी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी अरविंद मेदिरत्ता से निवेदिता मुखर्जी ने कारोबार बेचने की वजह, खुदरा परिचालन की चुनौतियों और उपभोक्ताओं के मिजाज के बारे में बात की। बातचीत के प्रमुख अंशः
रिलायंस रिटेल को कारोबार बेचने का समझौता किस चरण में है ?
अभी सौदा पूरा नहीं हुआ है और इससे जुड़ी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं। हम नियामकों से मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इस वित्त वर्ष के अंत तक सौदा पूरा होने की उम्मीद है।
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से निकल कर एक दिग्गज भारतीय कंपनी के साथ आने पर आपको कैसा महसूस हो रहा है?
मेट्रो कैश ऐंड कैरी जिस बी2बी मॉडल पर केंद्रित है उसकी भारतीय बाजार में काफी संभावनाएं हैं। स्टोर की संख्या बढ़ाने के लिए हमें निवेश और पूंजीगत व्यय की जरूरत है। रिलायंस को भारतीय बाजार की काफी समझ है और इस कारोबार में निवेश के लिए उसके पास पर्याप्त पूंजी है और वह कारोबार भी कई गुना बढ़ाने में सक्षम है।
रिलायंस समूह के साथ कई ऐसी बातें हैं जो हमारे कारोबार को नए मुकाम तक पहुंचा सकती हैं। रिलायंस के आने से हमारे कारोबार को एक नई मजबूती मिली है जिससे हमें आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुकूल शर्तों पर लेनदेन करने में मदद मिलेगी। जियो प्लेटफॉर्म के साथ तकनीक में भी रिलायंस रिटेल काफी मजबूत है। इसके अलावा बी2बी खंड में हमारी विशेषज्ञता भी काफी काम आएगी।
सौदा पूरा होने के बाद टीम का नेतृत्व कौन करेगा? क्या आप अपनी जगह पर बने रहेंगे और मेट्रो कैश ऐंड कैरी के कर्मचारियों का क्या होगा?
संगठन की संरचना भविष्य में कैसी होगी इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मगर रिलायंस के प्रतिनिधियों से मेरी जो बात हुई है उससे लगता है कि वे सभी लोगों को रखना चाहते हैं। हम अपने मुख्य कार्यालय और स्टोर में भी यही संदेश साझा कर रहे हैं। हम मुनाफा कमा रहे हैं और बी2बी खंड में कोई भी दूसरी कंपनी मुनाफा कमाने वाला कारोबार करने में सक्षम नहीं रही है। कर्मचारियों को उनके भविष्य के बारे में आश्वस्त करने की जरूरत है।
भारत में नियम-कायदों की वजह से वॉलमार्ट, टेस्को और कार्फूर जैसे बहु-ब्रांड रिटेल कंपनियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। मगर मेट्रो बी2बी पर केंद्रित थी। मेट्रो कैश ऐंड कैरी को किस तरह की दिक्कतें पेश आईं?
कोई दिक्कत पेश नहीं आई। सभी चीजें हमारे हक में रहीं। भारत में 2003 में पहला स्टोर खोलने के साथ ही हम बी2बी पर केंद्रित थे। हमें मुनाफा कमाने में लगभग 15 वर्षों का समय लग गया। 2018 में हमारा कारोबार पहली बार मुनाफे में आया और इस खंड में प्रतिस्पर्धा बढ़ने के बावजूद मुनाफे में ही रहे हैं।
मेट्रो एजी का भारतीय कारोबार बेचने का निर्णय क्यों लिया गया?
किसी भी कारोबार का परिचालन मजबूत होने के बाद इसका विस्तार किया जाता है। मुझे लगता है कि 1 अरब डॉलर राजस्व और 31 स्टोर के साथ बी2बी खंड में मौजूद संभावनाओं के साथ हम न्याय नहीं कर पा रहे हैं। इसे देखकर हमें लगा कि हम 600-700 अरब डॉलर के बाजार में काफी कुछ कर सकते हैं।
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हम अपना आकार 10 गुना बढ़ा सकते हैं मगर इसके लिए नए स्टोर खोलने के साथ ही आपूर्ति व्यवस्था और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत होती है। हमने अपनी मूल कंपनी के साथ इस संबंध में कई दौर की बातचीत की और भारत में संभावित विकल्प पेश किए। इस बात पर भी चर्चा हुई कि अगले 4 से 5 वर्षों में कितने निवेश की जरूरत है।
रूस और यूक्रेन में युद्ध के बाद काफी बदलाव आ चुके हैं। ये दोनों ही बाजार कंपनी के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। मूल कंपनी की एशियाई बाजार में दिलचस्पी नहीं थी। वह चीन से दो वर्ष पहले और वियतनाम से 8 वर्ष पहले निकल चुकी थी। मूल कंपनी पूरी तरह यूरोपीय बाजार पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती थी। इसके बाद हमने भारत में संभावित साझेदार की तलाश शुरू कर दी और अंततः रिलायंस रिटेल के साथ बात बन गई।