बाय नाउ पे लैटर (बीएनपीएल) यानी अभी खरीदें, बाद में भुगतान करें सुविधा से संबंधित नियमों में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की बीएनपीएल व्यवस्था की जानकारी मांगी है। केंद्रीय बैंक ने 24 सितंबर 2021 को ‘ऋण हस्तांतरण पर प्रमुख निर्देश’ जारी किए थे, जिनमें एनबीएफसी से हस्तांतरणकर्ता या प्राप्तकर्ता के रूप में उनकी भूमिका की जानकारी मांगी गई है।
मामले की गंभीरता का पता आरबीआई द्वारा एनबीएफसी को भेजे गए ई-मेल से चलता है, जिसमें कहा गया है कि आज ही सूचनाएं सौंपी जानी चाहिए।
एनबीएफसी और बीएनपीएल व्यवस्था के वरिष्ठ अधिकारी एकसुर में कहते हैं, ‘ऐसा लगता है कि आरबीआई ने इस बाजार के आकार की थाह लेने और कड़े नियमन लागू करने की दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है ताकि व्यापक खुदरा उपभोक्ता ऋणों में बढ़ते बीएनपीएल खंड में पारदर्शिता लाई जा सके।’
हालांकि इस बारे में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि बीएनपीएल के जरिये कुल कितने ऋण दिए गए हैं। मगर पिछले साल नवंबर में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म एवं मोबाइल ऐप के जरिये ऋण समेत डिजिटल ऋण पर कार्यसमूह की रिपोर्ट से इसका संकेत मिला था। इसमें कहा गया कि ‘हालांकि बीएनपीएल योजना के तहत वितरित राशि कुल ऋण वितरण की महज 0.73 फीसदी (बैंक) और 2.07 फीसदी (एनबीएफसी) है, लेकिन ऋणों की संख्या काफी अधिक है।’
आरबीआई के नमूने में शामिल कंपनियों का डिजिटल ऋण वितरण ही वित्त वर्ष 2020 में 12 गुना से अधिक बढ़कर 1,41,821 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 2017 में केवल 11,671 करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2017 में डिजिटल तरीके से वितरित कुल ऋण राशि में हिस्सेदारी के लिहाज से बैंकों (0.31 फीसदी) और एनबीएफसी (0.55 फीसदी) में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। एनबीएफसी कुल ऋणों की संख्या के लिहाज से पीछे थीं, जिनकी हिस्सेदारी 0.68 फीसदी जबकि बैंकों की 1.43 फीसदी थी। उसके बाद एनबीएफसी ने डिजिटल तरीके से ऋण वितरण में अच्छी प्रगति की है। इसी तरह यह भी कहा जा रहा है कि बैंकिंग नियामक सभी तरह के ऋणदाताओं द्वारा दिए जाने वाले प्रथम नुकसान डिफॉल्ट गारंटी (एफएलडीजी) के ढांचे को मानक बना सकता है।
एफएलडीजी डिजिटल प्लेटफॉर्मों (या अन्य किसी गैर-नियमित कंपनी) द्वारा उन ऋणदाताओं को गारंटी के रूप में दी जाने वाली राशि है, जिनके नाम पर वे कारोबार हासिल करते हैं। यह उस समय ऋणदाताओं की सुरक्षा के लिए है जब ऋण फंस जाते हैं। यहां समस्या यह है कि एफएलडीजी जारी करने के नियम मानक नहीं हैं।
