कैंसर से लड़ने वाली सिप्ला की दवा टार्सेवा को लेकर छिड़ी पेटेंट की कानूनी लड़ाई में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हॉफमैन ला रोश को राहत देने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट ने आज इस मामले में अंतरिम आदेश जारी कर दिया, लेकिन उन्होंने सिप्ला से इस दवा की बिक्री के आंकड़े इकट्ठा करते रहने को भी कहा, ताकि स्विट्जरलैंड की कंपनी को जीत मिलने की सूरत में क्षतिपूर्ति की गणना करने में आसानी रहे।
ला रोश ने अदालत में दावा किया है कि भारत और कई दूसरे देशों में टर्सेवा की बिक्री की सिप्ला की योजना है। यह दवा दरअसल एक ऐसी दवा का जेनरिक प्रारूप है, जिसका पेटेंट उसके पास है।
अदालात ने अपने आदेश में कहा कि दोनों दवाओं के बाजार मूल्य में बहुत ज्यादा फर्क है। सिप्ला की दवा बहुत सस्ती है, इसलिए उसे बाजार में बिकना चाहिए, जिससे मरीजों को राहत मिल सके। अपने आदेश में अदालत ने कहा कि मामले का रुख जनहित को देखकर ही तय किया जाना चाहिए, किसी कंपनी का हित देखकर नहीं।
सस्ती दवा की बिक्री गरीब मरीजों के लिए हितकारी है, इसलिए सिप्ला की दवा को बाजार में उतारे जाने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। यह दवा फेफड़ों के कैंसर का इलाज करने में इस्तेमाल की जाती है। ला रोश को पिछले साल फरवरी में ही इस दवा का पेटेंट हासिल हो चुका है।