आगरा की पृष्ठभूमि पर बने एक धारावाहिक ‘सपना बाबुल का…बिदाई’ को स्टार प्लस पर शुरू करने वाले टेलीविजन प्रोडयूसर राजन शाही को शायद ही उस वक्त इस बात की तनिक भी भनक नहीं रही होगी कि उनका यह धारावाहिक आने वाले दिनों में सुपरहिट होने वाला है।
दूसरी बात यह कि, हिंदी के आम मनोरंजन चैनलों के समक्ष भारत के छोटे शहरों की कहानियों को सामने रखने से एक नई प्रवृत्ति का जन्म होगा। बीते कुछ दिनों तक हिंदी के आम मनोरंजन चैनलों के टीआरपी चार्ट में यह धारावाहिक (बिदाई) पहले पायदान पर था।
‘बिदाई’ दो बहनों की कहानी है- जिसमें एक बहन गोरी व सुंदर है और दूसरी काली। ‘बिदाई’ की अपार सफलता के बाद शाही अब स्टार प्लस के लिए एक और धारावाहिक लेकर आए हैं। इस बार उनका धारावाहिक उदयपुर पर आधारित है, जिसका नाम ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ है। यह धारावाहिक भी स्टार पल्स के सुपरहिट धारावाहिकों में शुमार हो गया है।
इससे पहले शाही सोनी टेलीविजन के लिए ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ के निर्देशक के रूप में भूमिका निभा चुके हैं। इसके बाद उन्होंने खुद की ही एक प्रोडक्शन कंपनी बना ली। शाही को विश्वास है कि ‘बिदाई’ की अपार सफलता के बाद टेलीविजन चैनल अब छोटे शहरों में रहने वाले दर्शकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
श्रेया क्रिएशन के कार्यकारी निर्माता शील कुमार इस बदलाव के लिए बिदाई को भले ही श्रेय दें या न दें, लेकिन वह इस बात को स्वीकार करते हैं, ‘टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम अब दहिसर और बोरीवली से बाहर भी निकलने लगे हैं।’ टेलीविजन की दुनिया में कई सालों तक मुंबई और गुजरात की कहानियों का ही वर्चस्व रहा है। कुमार ने बताया, ‘वास्तविकता को नजदीक से दर्शाने के लिए अब टीवी प्रोडयूसर बड़े शहरों के बजाए छोटे शहरों का रुख कर रहे हैं।’
हाल ही में शुरू हुए एक नए मनोरंजन चैनल रियल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील लुला ने बताया कि किस तरह छोटे परदे ने मध्यम दर्जे के शहरों में एकाएक अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। उन्होंने बताया, ‘सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए छोटे शहर एक नए मंच के रूप में उभर रहे हैं। छोटे शहर वास्तव में टेलीविजन को समकालीन भारत के एक व्यापक कैनवास पर अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करते हैं।’
हालांकि कलर्स के मुख्य कार्य अधिकारी राजेश कामत यह दावा करते हैं कि हिंदी के आम मनोरंजन चैनलों में छोटे शहरों को ज्यादा तरजीह दिए जाने की प्रवृति में उनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने बताया कि यह बदलाव वास्तव में पिछले साल उनके मनोरंजन चैनल के लॉन्च होने के बाद देखने को मिला है।
उन्होंने बताया कि पिछले आठ सालों से छोटे परदे पर राज करने वाली सास-बहू गाथा से इतर कलर्स ने एक अलग ही प्रवृति को जन्म दिया है। कलर्स पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक बालिका वधु ने हिंदी के आम मनोरंजन चैनलों के दर्शकों को अपनी ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित किया है।
यह धारावाहिक राजस्थान में होने वाले बाल-विवाह पर आधारित है। यह धारावाहिक चैनल के शीर्ष धारावाहिकों में से एक है। बालिका वधु के प्रोडयूसर संजय वाधवा ने बताया, ‘दर्शक प्रयोग करने के लिए तैयार हैं। यहां किसी भी धारावाहिक के लिए कोई गणित या नियम-कानून नहीं है, बल्कि सच यह है कि सादगी वापस आ गई है।’
एक बात तो स्पष्ट है कि स्टार प्लस, कलर्स या फिर एनडीटीवी इमेजिन पर दिखाए जाने वाले ज्यादातर धारावाहिक असल जिंदगी के काफी नजदीक दिखाई देते हैं। इन चैनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक छो शहरों से जुड़े होते टीवी चैनलों ने अब अपना ध्यान काल्पनिक कहानियों से हटा कर असली नाटकों पर केंद्रित किया है।
‘द की’ नामक एक गुणात्मक अनुसंधान एजेंसी का संचालन करने वाली स्वतंत्र परामर्शदाता शालिनी रावला ने बताया, ‘टेलीविजनों पर दिखाए जाने वाली किचन पॉलिटिक्स से महिलाएं अब उब चुकी हैं।’ हालांकि, अन्य कुछ लोगों का मानना है कि छोटे शहरों की कहानियां ज्यादा मशहूर इसलिए हो जाती हैं क्योंकि वे ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होती हैं।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि शालिनी रावला टेलीविजन की वापसी को आर्थिक मंदी के साथ जोड़ कर देखती हैं। उनके अनुसंधान के मुताबिक क्योंकि अभी मंदी का दौर चल रहा है इसलिए लोग घर में टेलीविजन देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं और वह ऐशो-आराम की चीजों पर खर्च कम कर रहे हैं।
शील कुमार का मानना है, ‘मंदी ने टीवी दर्शकों को प्रभावित किया है। लोग टीवी चलाते ही बजाज परिवार को नहीं देखना चाहते जो 100 करोड़ रुपये की बात करता है।’