अमेरिका में छाई मंदी की मार से अब वहां के शिक्षण संस्थान भी बेजार होते नजर आ रहे हैं।
पश्चिमी देशों में नौकरियों पर आए संकट की वजह से अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए जाने वाले छात्र अब वहां जाने से कन्नी काट रहे हैं। इसके अलावा लगातार मजबूत होते डॉलर से भी इन छात्रों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ रहा है।
छात्रों को उन देशों में पढ़ाई के लिए जाने की सलाह दी जा रही है जहां पर वित्तीय हालात बदहाल नहीं हैं और नौकरी की संभावनाएं काफी मजबूत हों। छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए भेजने वाले संस्थानों का कहना है कि विदेश में पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में 15 से 25 फीसदी की कमी आई है। मुंबई का जी बी एजुकेशन भी ऐसा ही एक संस्थान है, जो छात्रों को विदेश में पढ़ने का अवसर मुहैया कराता है।
संस्थान के निदेशक विनायक कामत कहते हैं, ‘इस साल अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है, जबकि छात्र कुछ दूसरे देशों का रुख करना मुनासिब समझ रहे हैं। हम छात्रों को सलाह दे रहे हैं कि वे न्यूजीलैंड या कनाडा जैसे देशों में पढ़ाई करें। इन देशों में आर्थिक हालात काफी काबू में हैं और वहां पर नौकरियां बढ़ने पर ही हैं।’
जानकारों का भी मानना है कि विदेश में पहले से ही पढ़ाई कर रहे काफी छात्रों ने अपनी पढ़ाई आगे चलाने के इरादे को कुछ वक्त के लिए टाल दिया है। विदेश में छात्र या तो अपने संसाधनों से ही पढ़ाई करने के लिए जाते हैं या फिर स्कॉलरशिप के जरिये। वहीं कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं, जिनको विश्वविद्यालय या संस्थान के लिए काम करने के बदले में कुछ छूट मिल जाती है।
मंदी की वजह से पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका में विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने इस मद में अपने बजट में कटौती की है, जिससे इन छात्रों के सपने की हवा निकल गई है। रही सही कसर डॉलर की कीमतों में तेजी ने पूरी कर दी है। दूसरी ओर इन देशों में फिलहाल अपने देश के विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने का काम पूरे जोर पर है।
अमेरिका के मशहूर विश्वविद्यालय येल यूनिवर्सिटी के येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने भी इस रुझान की तस्दीक की है। विश्विद्यालय की ओर से कहा गया है कि उनके यहां पर विदेशी छात्रों ने कम संख्या में आवेदन किया है जबकि घरेलू छात्रों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। वैसे स्कूल ने किसी तरह के आंकड़े नहीं दिए हैं।
हालांकि टक स्कूल ऑफ बिजनेस, दर्तमाउथ की निदेशक डाउना क्लार्क का मानना है कि आर्थिक मंदी के बावजूद भारत से पढ़ाई के लिए आने वाले छात्रों की संख्या स्थिर बने रहने और 35 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है।
पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने के मामले में डॉलर का मजबूत होना भी किसी बेड़ी से कम नहीं है। पिछले एक साल में रुपये के मुकाबले में डॉलर की कीमत में 25 फीसदी का उछाल आया है। एक साल पहले डॉलर की कीमत 40 रुपये के बराबर थी, जो फिलहाल 50 रुपये के आंकड़े से ऊपर है।
इस लिहाज से देखें तो अब छात्रों जिस छात्र को एक साल पहले टयूशन फीस के तौर पर अगर 9 लाख से 10 लाख रुपये देने पड़ते थे, उसको अब 12 लाख से 15 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं। पढ़ाई के खर्च में इतना ज्यादा इजाफा होना भी छात्रों को अमेरिका का जहाज नहीं पकड़ने के लिए मजबूर कर रहा है।
इसके अलावा अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों में नौकरियों में आई कमी की वजह से भी ये छात्र जोखिम मोल नहीं लेना चाह रहे हैं क्योंकि अधिकतर इन देशों में पढ़ने के लिए जाते ही इसी मकसद से हैं कि पढ़ाई के बाद नौकरी भी वहीं पर ही मिल जाए। मंदी की वजह से नौकरियां नहीं होने का मतलब है कि उनका मकसद पूरा नहीं होगा।
अमेरिका जाने वाले छात्रों की तादाद हुई 15 से 25 फीसदी कम
आर्थिक मंदी से घट गए नौकरी के मौके और महंगे डॉलर ने की हालत खराब
न्यूजीलैंड और कनाडा बन रहे हैं नई पसंद
इन देशों में हैं नौकरी की बेहतर संभावनाएं
कई ने तो मुनासिब समझा देश में ही पढ़ना
छात्र ढूंढ रहे हैं बेहतर पढ़ाई के दूसरे रास्ते