भारत पर 25 फीसदी शुल्क और लगाने के अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले पर देश के चिकित्सा उपकरण उद्योग ने चिंता जताई है। मेडिकल टेक्नॉलजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमटीएआई) ने अमेरिका के इस कदम को दूरदर्शिताहीन बताते हुए कहा कि इससे निर्यातकों को गहरा झटका लगेगा। इसका आर्थिक असर तो होगा ही, विश्व व्यापार में अस्थिरता भी इससे खत्म होगी। भारत पर 25 फीसदी शुल्क का ऐलान पिछले महीने ही हो गया था और बुधवार को घोषित शुल्क इसके अलावा है।
उद्योग के अधिकारियों को आशंका है कि शुल्क बढ़ने के बाद भारत चिकित्सा उपकरण निर्यात की होड़ में चीन और यूरोपीय संघ से पिछड़ सकता है। एक भारतीय चिकित्सा उपकरण निर्माता कंपनी के वरिष्ठ कार्यकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अमेरिका में हम कम जोखिम वाले उपकरणों के बाजार में ही हैं, जहां लागत के मामले में चीन से हमें कड़ी टक्कर मिल रही है। नई शुल्क दरों से स्थिति और बिगड़ने की आशंका है।’
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यूरोपीय संघ ने अमेरिका के 15 फीसदी शुल्क पर रजामंदी जता दी है और चीन पर 30 फीसदी शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। मगर ये दोनों भारत पर थोपे गए 50 फीसदी शुल्क से कम हैं। फार्मास्यूटिकल्स विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत से होने वाले कुल चिकित्सा उपकरण निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी बहुत अधिक नहीं है मगर एंडोस्कोप, हड्डी के इंप्लांट, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) उपकरण, यूरिनरी कैथेटर तथा इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (ईसीजी) का वहां के लिए सबसे ज्यादा निर्यात होता है।
इस बीच एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के फोरम कोऑर्डिनेटर राजीव नाथ ने कहा कि चीन के लिए शुल्क दरों की आधिकारिक घोषणा होने तक भारत पर लगे शुल्क के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, ‘यदि भारत के चिकित्सा उपकरणों पर लगे अमेरिकी शुल्क चीन के मुकाबले 15 से 20 फीसदी कम रहते हैं तो भारत से निर्यात बढ़ सकता है बशर्ते विनिर्माता एफडीए से मंजूरी का खर्च आदि निकालने के बाद भी घाटे में नहीं रहें।
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एमटीएआई ने कहा कि शुल्क बढ़ोतरी के ट्रंप के कदम से अमेरिकी मरीजों को भी नुकसान हो सकता है। खास तौर पर चिकित्सा उपकरण और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी तरह का खलल अमेरिकी नागरिकों पर बड़ा असर डालेगा।