उच्चतम न्यायालय ने हाल में फैसला दिया है कि दीवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का अंतरिम मोरेटोरियम किसी कंपनी या किसी व्यक्ति को नियामकीय बकाये के भुगतान से नहीं बचाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला बेईमान रियल एस्टेट डेवलपरों, कारोबारियों और व्यक्तिगत गारंटरों के लिए एक झटका है, जो इस संहिता का सहारा लेकर नियामकीय भुगतान से बचने की कवायद करते हैं।
शीर्ष अदालत का आदेश ईस्ट ऐंड वेस्ट बिल्डर्स के मालिक पर लगाए गए जुर्माने और उसे लागू करने के संबंध में था, जो राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा दीवाला की कार्यवाही से गुजर रहा है। किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड एटॉर्नीज़ में पार्टनर दीपिका कुमारी ने कहा, ‘इस फैसले ने मिसाल कायम की है। इससे सुनिश्चित हुआ है कि वित्तीय संकट के दौरान भी उपभोक्ताओं के अधिकार और नियामकीय जुर्माने लागू रहेंगे।’
कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि ग्राहकों ने कब्जा देने में देरी, कम गुणवत्ता के निर्माण, एनसीडीआरसी या रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) के आदेशों का अनुपालन न करने को लेकर शिकायतों का सामना करने वाले कई बिल्डरों ने आईबीसी स्थगन के तहत सुरक्षा प्राप्त करने का प्रयास किया है। शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में यह साफ किया है कि नियामक जुर्माने आईबीसी के तहत कर्ज नहीं हैं।
ऐसे में दीवाला कार्यवाही की वजह से ग्राहक सुरक्षा कानूनों के उल्लंघन को लेकर लगाए गए जुर्मानों से छूट नहीं मिलती है। आईबीसी वकीलों ने कहा कि बिल्डर और कारोबारी अब वित्तीय संकट का बहाना बनाकर ग्राहकों, निवेशकों और नियामक निकायों के प्रति अपने कानूनी दायित्वों से बच नहीं सकते।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स की मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘इस फैसले का असर रियल एस्टेट क्षेत्र से इतर भी जाएगा। इससे साफ हो गया है कि अन्य नियामक संस्थाएं जैसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), रेरा, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्राधिकरण, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) दीवाला कार्यवाही के बावजूद उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाना जारी रख सकते हैं।’