महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहली नीलामी की प्रक्रिया आने वाले महीनों में शुरू होने वाली है। देश की महत्त्वपूर्ण खनिजों की नीलामी प्रक्रिया में 7,182 एकड़ जमीन की नीलामी होगी। वैसे तो इस नीलामी से भारत की ऊर्जा सुरक्षा का रास्ता सुनिश्चित होगा लेकिन विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि क्या सरकार समानता और वैश्विक न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन के सिद्धांतों के आधार पर भूमि का हस्तांतरण कर पाएगी?
नाम गुप्त रखने की शर्त पर इस उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘सरकार मंजूरी तो दे देगी लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि यह समानता और केवल वैश्विक सिद्धातों के आधार पर दिए जाएं। हालिया नीलामी के नियम इन्हें पूरा नहीं करते हैं।’
उत्तराखंड बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में भूविज्ञानी और पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एसपी सती ने कहा ‘निष्पक्ष ऊर्जा सिद्धांत की अनुपस्थिति के अलावा अपशिष्ट निपटान के लिए कड़े प्रोटोकॉल की कमी महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।’
इसके अलावा सती ने महत्त्वपूर्ण खनिजों की खुदाई के दौरान संवेदनशील पहाड़ी इलाकों के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका भी जताई।
नीलामी के दस्तावेज के अनुसार 20 ब्लॉकों की 7,182 हेक्टेयर भूमि पर खुदाई की जाएगी। इस भूमि को तीन हिस्से हैं जिनमें वन भूमि, सरकारी जमीन और निजी जमीन है। इसमें करीब 1,233 हेक्टेयर वन भूमि है। इन 20 ब्लॉकों में से केवल 13 ब्लॉकों की वन भूमि के बारे में जानकारी उपलब्ध है।
महत्त्वपूर्ण खनिज ऊर्जा के लिए अनिवार्य हैं लेकिन इनके खनन से पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। किसी भी तरह की खनन की गतिविधि से भूदृश्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वायु और जल प्रदूषित होता है। इसके अलावा पारिस्थितकी तंत्र के क्षरण का खतरा मंडराता है। स्थानीय समुदायों में विस्थापन और वनस्पतियों व जीवों के नष्ट होने का खतरा मंडराता है।
केंद्रीय खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 29 नवंबर को नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत के दौरान कहा था कि इन 20 ब्लॉकों का समन्वित मूल्य 5.4 अरब डॉलर (45,000 करोड रुपये) होने का अनुमान है। हालांकि विशेषज्ञों ने निवेशकों द्वारा पर्यावरण अनुकूल और स्वच्छ तकनीक अपनाए जाने पर अनिश्चितता जताई है। अभी तक देश में यह क्षेत्र परीक्षण के दौर से नहीं गुजरा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि इन परियोजनाओं की गहन जांच होनी चाहिए। तर्क यह दिया गया कि महत्त्वपूर्ण खनिजों की नीलामी में आमतौर पर जटिल खुदाई की प्रक्रिया होती है। इससे पर्यावरण पर अधिक प्रतिकूल असर पड़ता है।
उदाहरण के तौर पर लीथियम की खुदाई से जलीय संसाधन प्रदूषित होते हैं। कोबॉल्ट की खुदाई से चुनिंदा क्षेत्रों में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है और पर्यावरण संबंधी समस्याएं खड़ी होती हैं।
एनजीओ वनशक्ति के निदेशक स्टालिन डी. के अनुसार इन सभी परियोजनाओं में लाखों पेड़ काटे जा सकते हैं। इससे वन्यजीवों के आवास नष्ट होंगे और क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन का स्तर बढ़ता है।