तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने नवंबर से शुरू हुए आपूर्ति वर्ष 2024-25 में 88 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए अपने ताजा निविदा में पहली बार यह फैसला किया है कि सहकारी चीनी मिलों से उत्पादित एथेनॉल को प्राथमिकता दी जाएगी।
यह सहकारी चीनी मिलों के लिए सकारात्मक है, जिनकी 2023-24 सीजन में उत्पादित करीब 3.2 करोड़ टन चीनी में 30 फीसदी हिस्सेदारी रही है, लेकिन यह निजी मिल मालिकों के लिए थोड़ा नुकसानदेह हो सकता है। पहली निविदा में 9.16अरब लीटर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए बोली मिली थी, जिसमें 8.37 अरब लीटर की बोली स्वीकार की गई। बहरहाल खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आज संसद में कहा कि 2024-25 सत्र में 13 दिसंबर तक गन्ने का कुल 11,141 करोड़ रुपये भुगतान होना था, जिसमें से 2024-25 के पहले 70 दिनों में किसानों को 8,126 करोड़ रुपये भुगतान किया जा चुका है।
साथ ही इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले 5 वित्त वर्ष में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 24.3 फीसदी बढ़ा है, जबकि इस दौरान डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक 21.8 फीसदी बढ़ा है। इसी अवधि के दौरान गन्ने की कीमत 26 फीसदी बढ़ी है, जबकि चीनी की कीमत सिर्फ 13 फीसदी बढ़ी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक विरोधाभास है, जहां कच्चे माल की थोक कीमतें अंतिम उत्पाद की कीमतों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी हैं। उप-उत्पादों की स्थिति देखें तो पिछले 5 वर्षों में मोलैसिस की कीमतों में 45.7 फीसदी वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण एथेनॉल कार्यक्रम में मोलैसिस का बढ़ता उपयोग है।
इन्फोमेरिक्स ने कहा कि चीनी की कीमत में सुस्त वृद्धि की वजह यह है कि न्यूनतम बिक्री मूल्य के माध्यम से इस पर नियंत्रण होता है, जिसमें 2019 के बाद कोई बदलाव नहीं किया गया है।