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कोयला खनन में निजी फर्मों की बढ़ रही हिस्सेदारी, प्राइवेट MDO ने की करीब 80 करोड़ टन माइनिंग

Last Updated- May 28, 2023 | 11:42 PM IST
Coal import

साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने पहले आवंटित सभी कोयला खदानों और नया कोयला खनन विशेष प्रावधान कानून (CMSP) को रद्द किए जाने के बाद से कोयला खनन क्षेत्र ने नए सिरे से शुरुआत की। इससे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों को रिकॉर्ड संख्या में कोयला खदान आवंटित किए गए और पिछले दशक तक ठेकेदारों के वर्चस्व माना जाने वाला यह उद्योग समृद्ध खनन विकास एवं ऑपरेटर्स (MDO) इकोसिस्टम में बदल गया।

बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि सालाना 78 करोड़ टन उत्पादन वाले 80 खदानों का परिचालन और खनन निजी MDO द्वारा किया जा रहा है। इनमें सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों – NTPC, NLC, SAIL और वि​भिन्न राज्यों की बिजली उत्पादक कंपनियों को आवंटित खदानें शामिल हैं।

यह कोल इंडिया द्वारा कोयला उत्पादन की योजना के अतिरिक्त है। कोल इंडिया ने अगले 5 साल में अपने करीब 90 फीसदी खदानों से MDO के जरिये खनन करने का लक्ष्य रखा है। 11.2 करोड़ टन उत्पादन क्षमता के लिए करीब 15 MDO की निविदा पर विचार चल रहा है।

अदाणी एंटरप्राइजेज(Adani Enterprises), एस्सेल माइ​निंग (Essel Mining), दिलीप बिल्डकॉन (Dilip Buildcon), बीजीआर माइनिंग (BGR Mining) के EPC (engineering, procurement, and construction) फर्मों के जरिये स्थानीय ठेकेदार भी कोयला MDO इकोसिस्टम में शामिल हैं।

कोल इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (MD) प्रमोद अग्रवाल ने हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा था कि करीब 75 फीसदी कोयले का खनन आउटसोर्स के जरिये किया जा रहा है।

कोयला मंत्रालय द्वारा 2023-24 के लिए बनाई गई कार्ययोजना के बारे में उन्होंने कहा, ‘कोयला उत्पादन बढ़ाने और दक्षता लाने के लिए कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया के खदानों के लिए खनन विकास एवं ऑपरेटर (MDO) मॉडल जैसे उपाय को अपनाया है।’

बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए ज्यादा कोयले की जरूरत है क्योंकि ताप बिजली (thermal power) प्लांट अभी भी बिजली आपूर्ति की रीढ़ बने हुए हैं।

कोयला मंत्रालय और कोल इंडिया लागत कम करने और कोयला खनन में दक्षता लाने के लिए MDO मॉडल में संभावनाएं देख रहा है। वरिष्ठ अ​धिकारियों ने कहा कि MDO के जरिये मंत्रालय परिसंप​त्ति मुद्रीकरण लक्ष्य को भी पूरा करने की संभावना देख रहा है।

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चालू वित्त वर्ष के लिए कोयला मंत्रालय ने 50,118 करोड़ रुपये की परिसंप​त्ति मुद्रीकरण (asset monetisation) का लक्ष्य रखा है, जिनमें से 10 से 20 फीसदी MDO के जरिये होगा। पिछले वित्त वर्ष में 24,626 करोड़ रुपये के मुद्रीकरण का लक्ष्य हासिल किया गया था जिनमें एमडीओ की हिस्सेदारी 6,735 करोड़ रुपये रही थी।

निजी कंपनियों में MDO में अदाणी की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। इसके पास 10 करोड़ टन सालाना क्षमता वाले कुल 9 कोयला ब्लॉक हैं। एस्सेल माइनिंग के पास चार खदानें हैं। त्रिवेणी इंजीनियरिंग, सैनिक माइनिंग, अंबे माइनिंग (Ambey Mining), तालाबीरा माइनिंग (Talabira Mining) जैसे कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने स्थानीय खनन फर्मों के तौर पर काम शुरू किया है और कोयला खनन के कई अनुबंध हासिल किए हैं।

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तमिलनाडु की त्रिवेणी इंजीनियरिंग का दावा है कि उसके पास हैवी अर्थ मूवर्स मशीनरी का सबसे बड़ा बेड़ा है। बेंगलूरु की जेएमएस माइनिंग (JMS Mining) ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि उसके पास 13 भूमिगत खनन परियोजनाएं (underground mining projects) हैं जिनकी कुल उत्पादन लक्ष्य 57 लाख टन है।

ठेकेदार से MDO के क्षेत्र में उतरी सैनिक माइनिंग के दो प्रवर्तकों में रुद्र सेन सिंधु और कैप्टन कुलदीप सोलंकी शामिल हैं। सिंधु भारतीय जनता पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा के दामाद हैं।

हालांकि MDO ने विवाद को भी जन्म दिया है। अदाणी समूह को छत्तीसगढ़ में लगातार कड़े विरोध का सामाना करना पड़ा है। नागरिक समाज और पर्यावरण समूहों की ओर से उठाए गए विवाद की मुख्य वजह यह है कि MDO उन टिकाऊपन, R&R कार्यप्रणाली का पालन नहीं करते हैं, जिसका अनुपालन करने के लिए कोल इंडिया जैसी खनन कंपनियां कानूनन बाध्य होती हैं।

छत्तीसगढ़ में हसदेव वन क्षेत्र के आसपास के इलाकों में परसा पूर्वी केती बेसिन कोयला ब्लॉक (Parsa East Kete Basan coal block) को सबसे लंबे समय तक विरोध का सामना करना पड़ा है। यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को 2015 में आवंटित किया गया था। इसके बाद आंवटी ने इसे अदाणी समूह को MDO अनुबंध के तहत दे दिया। हालांकि कंपनी के अधिकारियों का दावा है कि यहां से निकाले जाने वाले कोयले की आपूर्ति राजस्थान को की जा रही है। इस बारे में जानकारी के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम से संपर्क नहीं हो पाया।

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कोल इंडिया के वरिष्ठ अ​धिकारियों ने कहा कि कंपनी ने अपने MDO के लिए कड़े नियम निर्धारित किए हैं और उन्हें उसी श्रम, R&R प्राथाओं का पालन करना होता है जिसका कंपनी खुद पालन करती है।

इसके साथ ही कानून में कई दफे बदलाव कर MDO परिचालन को आसान बनाया गया है। 2015 से पहले एमडीओ को उनके साथ अनुबं​धित कोयला खदान के स्वामित्व की अनुमति दी गई थी। इस नियम को नए CMSP Act, 2015 में संशो​धित किया गया था। बाद में इसमें बदलाव किया गया और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में पिछले MDO ठेकेकारों को दी गई खदानों में काम जारी रखने की अनुमति मिल सके लेकिन उन्हें स्वामित्व की अनुमति नहीं दी गई।

First Published - May 28, 2023 | 7:34 PM IST

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